भूल का फल – शिक्षाप्रद कथा
रात में वर्षा हुई थी| सबेरे रोज से अधिक चमकीली धूप निकली|
एक ब्राह्मण देवता थे| बड़े गरीब और सीधे थे| देश में अकाल पड़ा| अब भला ब्राह्मण को कौन सीधा दे और कौन उनसे पूजा-पाठ करावे|
एक बहेलिया था| चिड़ियों को जाल में या गोंद लगे बड़े भारी बाँस में फँसा लेना और उन्हें बेच डालना ही उसका काम था|
एक दिन एक ऊँट किसी प्रकार अपने मालिक से नकेल छुड़ाकर भाग खड़ा हुआ| वह भागा, भागा और सीधे पश्चिम भागता गया, वहाँ तक जहाँ रास्ते में एक नदी आ गयी|
भैंस और घोड़े में लड़ाई हो गयी| दोनों एक ही जंगल में रहते थे| पास-पास चरते थे और एक ही रास्ते से जाकर एक ही झरने का पानी पीते थे|
वर्षा के दिन थे| तालाब लबालब भरा हुआ था| मेढक किनारे पर बैठे एक स्वरसे टर्र-टर्र कर रहे थे| कुछ लड़के स्नान करने लगे|
जाड़े का दिन था और शाम हो गयी थी| आसमान में बादल छाये थे| एक नीम के पेड़ पर बहुत-से कौए बैठे थे|
एक घने जंगल में मदोत्कट नामक एक शेर रहता था| उसके तीन कृतघ्न मित्र थे – गीदड़, कौआ और भेड़िया| वे शेर के मित्र मात्र इसलिए थे क्योंकि वह जंगल का राजा था|
एक समय किसी जंगल में गोमय नामक एक गीदड़ रहता था| एक दिन भूख से व्याकुल वह भोजन की तलाश में यहां-वहां भटक रहा था|
एक गहरे कुएं में मेंढकों का राजा गंगादत्त रहता था| उसके साथी व परिवारजन भी उसी कुएं में रहते थे|