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मेरा जन्म केरल के एक छोटे-से गांव वायनाड में हुआ था। मेरे पिता काॅफी के एक बगीचे में दैनिक मजदूरी का काम करते थे। तमाम पिछड़े गांवों की तरह मेरे गांव में भी सिर्फ एक ही प्राइमरी स्कूल था। हाई स्कूल करने के लिए बच्चों को गांव से चार किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता था। बचपन में मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता था, इसलिए स्कूल के बाद मैं पिता के पास बगीचे में चला जाता था। पढ़ाई से बेरूखी के कारण मैं कक्षा छह में फेल हो गया। 

1. आलस्य से हम सभी परिचित हैं। काम करने का मन न होना, समय यों ही गुजार देना, आवश्यकता से अधिक सोना आदि को हम आलस्य की संज्ञा देते हैं और यह भी जानते हैं कि आलस्य से हमारा बहुत नुकसान होता है। फिर भी आलस्य से पीछा नहीं छूटता, कहीं-न-कहीं जीवन में यह प्रकट हो ही जाता है। आलस्य करते समय हम अपने कार्यों, परेशानियों आदि को भूल जाते हैं और जब समय गुजर जाता है तो आलस्य का रोना रोते हैं, स्वयं को दोष देते हैं, पछताते हैं। सच में आलस्य हमारे जीवन में ऐसे कोने में छिपा होता है, ऐसे छद्म वेश में होता है, जिसे हम पहचान नहीं पाते, ढूँढ़ नहीं पाते, उसे भगा नहीं पाते; जबकि उससे ज्यादा घातक हमारे लिए और कोई वृत्ति नहीं होती।