Home2013

(1) हम सब मिलकर संकल्प लेते हैं, 2022 तक नए भारत के निर्माण का:-

1942 में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने एक संकल्प लिया था, ‘भारत छोड़ो’ का और 1047 में वह महान संकल्प सिद्ध हुआ, भारत स्वतंत्र हुआ। हम सब मिलकर संकल्प लेते हैं, 2022 तक स्वच्छ, गरीबी मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त, आतंकवाद मुक्त, सम्प्रदायवाद मुक्त तथा जातिवाद मुक्त नए भारत के निर्माण का। भारत के लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। तब से इस महान दिवस को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। देश को अन्यायपूर्ण अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान तथा त्याग का मूल्य किसी भी कीमत पर नहीं चुकाया जा सकता। इन सभी ने अपने युग की समस्या अर्थात ‘भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए’ अपने परिवार और सम्पत्ति के साथ ही अपनी सुख-सुविधाओं आदि चीजों का त्याग किया था। आजादी के इन मतवाले शहीदों के त्याग एवं बलिदान से मिली आजादी को हमें सम्भाल कर रखना होगा। भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीदों के बलिदानी जीवन हमें सन्देश दे रहे हैं – हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के।

मेरा जन्म केरल के एक छोटे-से गांव वायनाड में हुआ था। मेरे पिता काॅफी के एक बगीचे में दैनिक मजदूरी का काम करते थे। तमाम पिछड़े गांवों की तरह मेरे गांव में भी सिर्फ एक ही प्राइमरी स्कूल था। हाई स्कूल करने के लिए बच्चों को गांव से चार किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता था। बचपन में मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता था, इसलिए स्कूल के बाद मैं पिता के पास बगीचे में चला जाता था। पढ़ाई से बेरूखी के कारण मैं कक्षा छह में फेल हो गया। 

1. आलस्य से हम सभी परिचित हैं। काम करने का मन न होना, समय यों ही गुजार देना, आवश्यकता से अधिक सोना आदि को हम आलस्य की संज्ञा देते हैं और यह भी जानते हैं कि आलस्य से हमारा बहुत नुकसान होता है। फिर भी आलस्य से पीछा नहीं छूटता, कहीं-न-कहीं जीवन में यह प्रकट हो ही जाता है। आलस्य करते समय हम अपने कार्यों, परेशानियों आदि को भूल जाते हैं और जब समय गुजर जाता है तो आलस्य का रोना रोते हैं, स्वयं को दोष देते हैं, पछताते हैं। सच में आलस्य हमारे जीवन में ऐसे कोने में छिपा होता है, ऐसे छद्म वेश में होता है, जिसे हम पहचान नहीं पाते, ढूँढ़ नहीं पाते, उसे भगा नहीं पाते; जबकि उससे ज्यादा घातक हमारे लिए और कोई वृत्ति नहीं होती।