Home2012 (Page 15)

आठवे शताब्दी के जगविख्यात तत्त्वज्ञानी तथा वेदान्ती आदि श्री शंकराचार्यजी ने अव्दैत सिद्धांत का एकीकरण करके उसे स्थापित किया। इस सिद्धांत के अनुसार आत्मा तथा निर्गुण ब्रह्म  इन दोनों में एकरूपता होती है। आगे चलकर इस भारतवर्ष के अनेक ख्यात संतो तथा ऋषिमुनियों ने अव्दैत तत्त्व का प्रचार तथा प्रसार भी किया। उन्नीस तथा बीसवी शताब्दी में कर्नाटक के हुबली शहर में कार्यरत संत श्री सिद्धारूढ स्वामीजी (१८३६ – १९२९) ने इस तत्त्वप्रणाली को बड़ी सरलतासे समझाकर इसका प्रचार किया।

मानव जाति के अन्नदाता किसान को जमीन को कागजी दांव-पेच से आगे एक महान उद्देश्य से भरे जीवन की तरह देखना चाहिए। कागजी दांव-पेच को हम एक किसान की सांसारिक माया कह सकते हैं, लेकिन अब जमीन पर पौधे लगाने की योजना है, ताकि हमारा सांसारिक मोह केवल जमीनी कागज का न रहे, बल्कि जीवन का एक मकसद बनकर अन्नदाता तथा प्रकृति-पर्यावरण से भी जुड़ा रहे। किसान को अपने उत्तम खेती के पेशे का उसे पूरा आनंद उठाना है। सब्सिडी का लोभ और कर्ज की लालसा किसान को कमजोर करती है। जमीन बेचने की लत से छुटकारा तभी मिलेगा, जब हम धरती की गोद में खेलेंगे, पौधे लगाएंगे। जमीन-धरती हमारी माता है। परमात्मा हमारी आत्मा का पिता है। केवल धरती मां के एक टूकड़े से नहीं वरन् पूरी धरती मां से प्रेम करना है। धरती मां की गोद में खेलकूद कर हम बड़े होते हैं। धरती मां को हमने बमों से घायल कर दिया है। शक्तिशाली देशों की परमाणु बमों के होड़ तथा प्रदुषण धरती की हवा, पानी तथा फसल जहरीली होती जा रही है। 

उनका जन्म 5 मार्च 1970 में हुआ था। आठ वर्ष की उम्र में वह जीवन की सच्चाइयों को जानना बेहद निराश थे। वह जानना चाहते थे कि लोगों को अज्ञानता, भ्रम, अभाव और पीड़ा से कष्ट क्यों किया जाता है इसलिए, वह समझ गए कि यह दुख कर्म के कारण है और इस अहसास ने उसे एक अच्छे समाज के बारे में सपना देखा जो कल एक बेहतर दुनिया में विकसित हो सके।

भाद्रपद कृष्णपक्ष-अष्टमीकी अर्धरात्रिमें परम भागवत वसुदेव और माता देवकीके माध्यमसे कंसके कारागारमें चन्द्रोदयके साथ ही भगवान् श्रीकृष्णका प्राकट्य हुआ था|

नाम परस जैन (दीक्षा से पहले) जन्म तिथि 11 मई, 1970 जन्मस्थान धम्मरी, छत्तीसगढ़ का स्थान पिता का नाम स्वर्गीय भिकमचंद जैन माता का नाम श्रीमती गोपी बाई जैन शिक्षा बैचलर ऑफ आर्ट्स (जबलपुर) ब्रह्माचार्य व्रत 27 जनवरी, 1 99 3 (ग्रह टायग) ब्रह्मचर आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज अलक दीक्षा 27 जनवरी, 1994 दिक्षे ग्वालियर मध्य प्रदेश का स्थान मुनी दीक्षे 11 दिसंबर, 1995 दीक्षे

Read More

वे आध्यात्मिकता की पहचान जीवन के एक मार्ग के रूप में करते हैं। शिक्षण की उनकी शैली सरल लेकिन अभी तक व्यावहारिक है। उनका ज्ञान दार्शनिक है उनके विनम्र स्वभाव न केवल उनके अनुयायियों के लिए, बल्कि विद्वान संतों के सम्मानित समुदाय के लिए भी उन्हें प्रदान करता है।

स्वामीजी का जन्म एक सम्मानजनक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। एक बच्चे के रूप में, वह अपने पिछले जन्मों की घटनाओं की यादों में खोया जाता था और इस जीवन में संत बनने के लिए, जैसा कि उसने इसे रखा था।

वाराणसी आईआईटी बीएचयू के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद ‘इन्फर्नो’ नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास्तों पर चलने में सक्षम है। तीन लाख रूपये की लागत से तैयार इस कार को मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों की टीम ने सहायक प्रोफेसर रश्मिरेखा साहू के मार्गदर्शन में किया। अब यह छात्र चाहते हैं कि यह कार देश की सुरक्षा में तैनात भारतीय सेना के काम भी आए। इससे पहले यह इन्फर्नो इंदौर में सोसायटी आॅफ आॅटोमोटिव इंजीनियरिंग में पहला पुरस्कार जीत चुकी है। इस कार में 305 सीसी ब्रिग्स और स्ट्रैटन इंजन लगा है जो उसे रफ्तार देने में मदद करता है। इसके साथ ही ड्राइवर की सुरक्षा और कन्फर्ट का भी ख्याल रखा गया है। 50 डिग्री के पहाड़ पर भी यह कार चल सके, इसके लिए आगे के पहियों को बड़ा रखा गया है।

अंगारों की तरह दिखते पलाश के फूल, आम के पेड़ों पर आये बौर, हरियाली से ढकी धरती और चारो और पीली सरसों बसंत ऋतु के शुभ आगमन की बधाई देते हैं वास्तव में बसंत पंचमी ऋतु परिवर्तन का ऐसा त्यौहार है, जो अपने साथ मद-मस्त परिवर्तन लेकर आती है|