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वाराणसी आईआईटी बीएचयू के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद ‘इन्फर्नो’ नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास्तों पर चलने में सक्षम है। तीन लाख रूपये की लागत से तैयार इस कार को मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों की टीम ने सहायक प्रोफेसर रश्मिरेखा साहू के मार्गदर्शन में किया। अब यह छात्र चाहते हैं कि यह कार देश की सुरक्षा में तैनात भारतीय सेना के काम भी आए। इससे पहले यह इन्फर्नो इंदौर में सोसायटी आॅफ आॅटोमोटिव इंजीनियरिंग में पहला पुरस्कार जीत चुकी है। इस कार में 305 सीसी ब्रिग्स और स्ट्रैटन इंजन लगा है जो उसे रफ्तार देने में मदद करता है। इसके साथ ही ड्राइवर की सुरक्षा और कन्फर्ट का भी ख्याल रखा गया है। 50 डिग्री के पहाड़ पर भी यह कार चल सके, इसके लिए आगे के पहियों को बड़ा रखा गया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने माना था कि पिछली 20वीं सदी रक्तपात से भरी खूनी सदी थी। पिछली सदी में प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्धों का महाविनाश हुआ। इसके अलावा विभिन्न देशों के बीच अनेक युद्ध हुए। आतंकवाद की घटनाओं में मासूमों का खून बहाया गया। पंजाब केसरी में प्रकाशित एक लेख के अनुसार रूसी क्रान्ति के 100 सालों पर आज सोवियत संघ के प्रमुख मिखाइल गोर्बाच्योव यह साफ शब्दों में मान रहे हैं कि नेताओं ने सत्ता पाने के लिए जो किया वह उन्हें नहीं करना चाहिए था। गोर्बाच्योव के खुलापन और पुनर्निर्माण यही दो जुमले थे, जिन्होंने 73 साल पुराने और दुनिया के सबसे मजबूत व अभेद्य लौह किले को ताश के पत्तों की तरह ढहा दिया। वास्तव में 25 साल पहले जब क्रेमलिन में सोवियत संघ का झंडा आखिरी बार झुका था, उसके बाद वह झंडा हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास की धरोहर बन गया। बड़े-बड़े अनुमान लगाये गये थे, बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगायी गई कि लोकतंत्र की हवा बहते ही रूस दुनिया का सरताज बन जायेगा लेकिन 1991 में सोवियत संघ के बिखर जाने के बाद रूस के पतन की कहानियां जिन लोगों ने पढ़ी हैं, वह बहुत ही दुखदायी है। हमारा मानना है कि नई 21वीं सदी को सभी देशों को मिलकर गुफाओं से प्रारम्भ हुई मानव सभ्यता को स्वर्णिम युग में ले जाने का साहसिक निर्णय ले लेना चाहिए। यहीं आज मानवता की पुकार है।

बचपन से बाबाजी की ईश्वर की प्राप्ति के लिए एक मजबूत जुनून था और केवल इस निरंतर और भव्य इच्छा के कारण बाबाजी ईश्वरीय परमात्मा के साथ एक हो गए।

देश के प्रथम उप-प्रधानमंत्री लोहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल ने पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर कहा था कि भारत के इतिहास का एक नया अध्याय हमारे सामने खुल रहा है। हमारे पास अपने आप को बधाई देने की वजह है कि हम सब इस मुबारक मौके के भागीदार बन रहे हैं। यह हमारे लिए गर्व का भी अवसर है। लेकिन इस गौरव बोध और जश्न के साथ हमें अपने कर्तव्यों और दायित्वों को भी याद रखने की जरूरत है। हमें अपने-अपने दिल व दिमाग को साफ करके खुद से, नए गणराज्य से और देश से यह वादा करना चाहिए कि हम ईमानदार आचरण करेंगे। हमें याद रखने की जरूरत है कि हम कौन हैं, हमें क्या विरासत मिली है और हमने क्या हासिल किया है? 

बौद्ध वाड्मय जातक की एक कथा है| एक बार वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त अपनी न्यूनता और दोष ढूँढने के लिए उत्तर भारत के कई नगरों में गए| उन्हें उनके दोष कहने वाला कही कोई नहीं मिला|

महाराज श्री का जन्म 1982 में जोधपुर में शरद पूर्णिमा के पवित्र दिन श्री हरिश्चंद्र और श्रीमती मंजूलाटा से हुआ था। उन्हें पहले राधाकृष्ण नामित किया गया था, इसलिए उन्होंने अपने बचपन से अपने माता-पिता के नैतिक मूल्यों को प्राप्त करना शुरू कर दिया था। नतीजतन, उन्होंने अपने दादा दादी के साथ सत्संग में भाग लेना शुरू किया और पूरी रुचि और कुल भक्ति के साथ।

लखनऊ में 3 दिसम्बर 2016 को घटित एक समाचार के अनुसार कैथेड्रिल सीनियर सेकंेडरी स्कूल, लखनऊ के कक्षा 12 के पढ़ाई में टाॅपर छात्र ललित यादव ने पिता की लाइसंेसी रिवाॅल्वर से गोली मारकर मौत को गले लगा लिया। लखनऊ के मड़ियांव थाना क्षेत्र के केशवनगर में रहने वाले अमरनाथ यादव एसपी लखीमपुर के पेशकार है। परिजनों के मुताबिक, रोजाना की तरह ललित अपने छोटे भाई सुमित के साथ अपनी अपाचे बाइक से 3 दिसम्बर की सुबह भी स्कूल पढ़ने के लिए गए थे। छात्र के स्कूल पहुंचने के बाद प्रिन्सिपल फादर ने उसके पिता को फोन किया और बताया कि ललित ने अपनी बाइक से एक छात्रा के रिक्शे में टक्कर मार दी है। उस टक्कर लगने से रिक्शे पर बैठी छात्रा और उसका चालक सड़क पर गिर गये थे। प्रिन्सिपल की डांट से क्षुब्ध छात्र ललित ने घर आकर खुदकुशी कर ली। इस दुखद के घटना में दिवंगत छात्र ललित की आत्मा की शान्ति के लिए हम प्रार्थना करते हैं। परमपिता परमात्मा इस अपार दुःख को सहन करने की उनके परिवारजनों को शक्ति प्रदान करें।  

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की मूल शिक्षा ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की भावना पर आधारित भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 विश्व एकता का संदेश देता है। संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुसार भारत का गणराज्य (क) अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि करेगा, (ख) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बढ़ाने का प्रयत्न करेगा, (ग) संसार के सभी राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करें ऐसा प्रयत्न करेगा तथा (घ) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निबटारा माध्यस्थम् द्वारा हो का प्रोत्साहन देेगा। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रित देश में धर्म निरपेक्ष तथा अनूठे संविधान का 26 जनवरी 1950 को जन्म हुआ था। देश के 125 करोड़ भारतीय के लिए यह एक सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व है। गणतन्त्र दिवस के पावन पर्व पर सभी भारतीयों को अपने महान संविधान के अनुच्छेद 51 पर चिन्तन, मनन व मंथन करना चाहिए। संविधान में समाहित ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना को सारे विश्व के विभिन्न देशों में स्थित भारतीय दूतावासों के माध्यम से प्रसारित करने का यह दिवस है। भारतीय संविधान की पुस्तक विश्व के सभी देशों के राष्ट्रध्यक्षों तथा शासनाध्यक्षों को भेंट की जानी चाहिए।