Homeअतिथि पोस्टमानव सभ्यता को विकास की चरम ऊँचाइयों पर ले जाने की अब आवश्यकता है!

मानव सभ्यता को विकास की चरम ऊँचाइयों पर ले जाने की अब आवश्यकता है!

मानव सभ्यता को विकास की चरम ऊँचाइयों पर ले जाने की अब आवश्यकता है!

संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने माना था कि पिछली 20वीं सदी रक्तपात से भरी खूनी सदी थी। पिछली सदी में प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्धों का महाविनाश हुआ। इसके अलावा विभिन्न देशों के बीच अनेक युद्ध हुए। आतंकवाद की घटनाओं में मासूमों का खून बहाया गया। पंजाब केसरी में प्रकाशित एक लेख के अनुसार रूसी क्रान्ति के 100 सालों पर आज सोवियत संघ के प्रमुख मिखाइल गोर्बाच्योव यह साफ शब्दों में मान रहे हैं कि नेताओं ने सत्ता पाने के लिए जो किया वह उन्हें नहीं करना चाहिए था। गोर्बाच्योव के खुलापन और पुनर्निर्माण यही दो जुमले थे, जिन्होंने 73 साल पुराने और दुनिया के सबसे मजबूत व अभेद्य लौह किले को ताश के पत्तों की तरह ढहा दिया। वास्तव में 25 साल पहले जब क्रेमलिन में सोवियत संघ का झंडा आखिरी बार झुका था, उसके बाद वह झंडा हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास की धरोहर बन गया। बड़े-बड़े अनुमान लगाये गये थे, बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगायी गई कि लोकतंत्र की हवा बहते ही रूस दुनिया का सरताज बन जायेगा लेकिन 1991 में सोवियत संघ के बिखर जाने के बाद रूस के पतन की कहानियां जिन लोगों ने पढ़ी हैं, वह बहुत ही दुखदायी है। हमारा मानना है कि नई 21वीं सदी को सभी देशों को मिलकर गुफाओं से प्रारम्भ हुई मानव सभ्यता को स्वर्णिम युग में ले जाने का साहसिक निर्णय ले लेना चाहिए। यहीं आज मानवता की पुकार है।

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने माना कि नवंबर में हुए चुनावों में डेमाॅक्रेटिक नैशनल कमिटी (डीएनसी) की हैकिंग के पीछे रूस का हाथ था। इससे पहले अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने भी यही दावा किया था। सबसे पुराने लोकतंत्र वाले तथा सबसे शक्तिशाली अमेरिका की चुनाव प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने वाली इस तरह की साजिश ठीक नहीं है। इसकी गंभीर व पारदर्शी जांच अब जरूरी है। ताकि सच्चाई विश्व समुदाय के सामने आ सके। दुनिया के लोगों का सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश पर विश्वास बना रहना चाहिए। आगे आने वालों दिनों में हमें लोकतांत्रिक रूप से चयनित विश्व व्यवस्था बनाना आवश्यक होगा। तभी हम अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का हल कारगर ढंग से निकाल पायेंगे।  तानाशाही, राजशाही तथा पूँजीवादी साम्राज्य का युग अब बीत चुका। वैश्विक स्तर पर एक लोकतांत्रिक तथा न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था आज के युग की अब सबसे बड़ी मांग तथा आवश्यकता है।

डेमोक्रोटिक राष्ट्रपति बराक ओबामा के कड़े फैसलों के बाद भावी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारतीय आईटी पेशेवरों को नौकरी देने वाले एच-1 बी और एल1 वीजा पर सख्ती कर सकते हैं। सीनेट में सुनवाई के दौरान ट्रंप द्वारा नामित अटार्नी जनरल जेफ सेशंस ने यह वादा किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि कई अमेरिकी कर्मियों का मानना है कि स्थानीय कर्मियों की छंटनी और कम वेतन में, विदेशी कर्मियों को उनकी जगह रोजगार देना, राष्ट्रीयता संबंधी भेदभाव के बराबर है। हमें स्वीकार करना होगा कि आज की युवा पीढ़ी राष्ट्रों की सीमाओं से बाहर निकल विश्व भर में घूमकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहती है। कानून बनाकर युवा पीढ़ी के कदमों को आगे बढ़ने से रोकना ठीक नहीं है। अब विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाने का युग आ गया है। सक्षम भारत को इस दिशा में अब बिना समय गवाये पहल करनी चाहिए। भारत की जाग्रत प्रज्ञा का संदेश है – 21वीं सदी उज्जवल भविष्य।

भारत ने हाल ही में कलवरी श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी आईएनएस खंडेरी को मुंबई के मझगांव डाॅक शिपबिल्डर्स लिमिटेड में जलावतरण किया गया। यह पानी के भीतर सा सतह पर टाॅरपीडो के साथ-साथ पोत रोधी मिसाइलों से दुश्मनों के छक्के छुड़ाने और रडार से बच निकलने की उत्कृष्ट क्षमता से लैस है। इसके नौसेना बेड़े में शामिल होने पर भारत की समुद्री ताकत और बेहतर हो जाएगी। हमें आने वाली चुनौतियों का डटकर सामना करने के लिए अपने को चुस्त-दुरस्त रखना समय की मांग है। भारत अब विश्व का सफल लोकतांत्रिक, सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था, आधुनिकतम सैन्य शक्ति से लैस एक शक्तिशाली, गुटनिरपेक्ष तथा आत्मनिर्भर देश है।

भारत को अपनी शक्तिशाली देश की भूमिका को एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाने के लिए करना चाहिए। एक शक्तिशाली देश के वसुधैव कुटुम्बकम् तथा विश्व शान्ति के नारे को विश्व के सभी देश अवश्य सुनेंगे। प्रायः कमजोर देश की आवाज नहीं सुनी जाती है। विश्व का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका है। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वुड्रो विल्सन की पहल ने प्रथम युद्ध को रूकवाया कर वर्ष 1918 में लींग आॅफ नेशन्स की स्थापना की थी। उसके बाद फिर अमेरिका के ही राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन डी. रूजवेल्ट की पहल ने द्वितीय विश्व युद्ध को रूकवाकर संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना वर्ष 1945 में की थी। फ्रांस के प्रधानमंत्री श्री राबर्ट शूमेन ने ‘यूरोपीय यूनियन’ की स्थापना की पहल की थी। अब भारत को एक कदम बढ़ाकर तृतीय विश्व युद्ध की आशंका को हमेशा के लिए समाप्त करने के लिए विश्व सरकार का शीघ्र गठन करना चाहिए।

भारत के रक्षा मंत्रालय की एक समिति ने सेना में कटौती के चीन के निर्णय का अनुसरण करते हुए थल सेना के अमले में भारी कटौती की सिफारिश की है जिसमें बेवजह के खर्चाें को कम कर कुछ सैन्य संस्थाओं को बंद करने तथा कुछ अन्य का आकार छोटा करने की बात कही गयी है जिससे सेना को चुस्त-दुरूस्त और कुशल बनाया जा सके। समिति द्वारा उठाया गया यह कदम सराहनीय है।

हमारा विश्व समुदाय को सुझाव है कि जैसे आजादी के पहले देश में अलग-अलग रियासतों की अलग-अलग फौज हुआ करती थी, जिनमें प्रायः युद्ध हुआ करते थ। समय की मांग के अनुसार एक राष्ट्र की कल्पना की गयी और रियासतों को खत्म करके एक राष्ट्र का गठन किया गया। केन्द्र की सरकार को फौज पर पूरा नियंत्रण रखने का अधिकार दिया गया। अब स्वतंत्र भारत के दो राज्यों के बीच विवाद होने पर उसका समाधान आपसी परामर्श द्वारा निकाला जाता है। बातचीत के द्वारा समाधान न निकलने की स्थिति में दोनों राज्य न्यायालय की शरण में जाते हैं। उच्चतम न्यायालय का फैसला अन्तिम होता है। दोनों राज्यों को उसे मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। राज्यों के पास अपनी सेना नहीं होती है इस कारण से उनमें युद्ध कभी नहीं होते हैं। उसी प्रकार आज के वैश्विक युग की मांग है कि जनता द्वारा चुनी हुई एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनायी जाये तथा विश्व सरकार का गठन करके उसे ग्लोबल फौज का नियंत्रण सौंपा जाये। विश्व के सभी देश मानव जाति के सुरक्षित भविष्य के लिए स्वेच्छा से अपनी संप्रभुता का थोड़े-थोड़े अंश का त्याग करके राज्य का दर्जा स्वीकार करें। इस तरह से देशों के बीच होने वाले युद्ध रूक जायेंगे। साथ ही यह ग्लोबल फौज किसी भी देश में छिपे आतंकवादियों से मजबूती के साथ निपट सकंेगी। यह एक युद्धरहित तथा आतंकवाद रहित विश्व बनाने का एकमात्र विकल्प है।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने वही किया, जिसे करने से अधिकांश बड़े-बड़े नेता बचते हैं। आॅनलाइन कारोबार करने वाली कंपनी अमेजन की कनाडा वेबसाइट पर तिरंगे झंडे जैसा डोरमैट (पांव पोंछने के लिए दरवाजे पर रखा जाने वाला पांवपोश) बिकने की खबर मिलते ही वह तुरंत सक्रिय हुई और कुछ ही घंटे में कंपनी ने न सिर्फ इस डोरमैट की बिक्री रोक दी, बल्कि इसके लिए माफी भी मांगी। सुषमा जी द्वारा की गयी तुरन्त कार्यवाही सराहनीय है। किसी भी देश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान नहीं होना चाहिए। ध्वज देश आन-बान शान का प्रतीक होता है। भारत के तिरंगे को हम कभी नहीं झुकने देंगे। हम अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा

संविधान पर हमेशा गर्व है। भारत हमारा जुनून है। इसी तरह संसार की सबसे मोटी महिला ईमान अहमद की बेरियाट्रिक सर्जरी के लिए मुंबई के सैफी अस्पताल में अलग वाॅर्ड बनाया जा रहा है। 36 वर्षीय ईमान मिश्र की राजधानी काहिरा में रहती हैं। उनका वजन 500 किलोग्राम के करीब है। ईमान 25 साल से अपने घर से बाहर नहीं निकल सकी हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ईमान को भारत लाने में हर संभव मदद देने का भरोसा दिलाया है। सुषमा जी भारत की एक लोकप्रिय विदेश मंत्री के साथ मानवीय तथा विश्वव्यापी सोच रखने वाली एक साहसिक महिला है। 21वीं सदी नारी की सदी है। जिस दिन महिलायें सारे विश्व का शीर्ष नेतृत्व करेंगी उस दिन विश्व से युद्धों तथा आतंकवाद का नामोनिशान मिट जायेगा। एक महिला के अंदर एक ममतामयी मां का हृदय धड़कता है। सुषमा जी के मानवीय जज्बे को लाखों सलाम। बेटी ईमान अहमद के शीघ्र स्वस्थ होने की हम कामना करते हैं। इस साहसी बेटी के शारीरिक तथा मानसिक कष्ट में हम उसके साथ है। हमें विश्वास है कि वह भारत से स्वस्थ होकर अपने देश खुशी-खुशी वापिस जायेंगी।

ओशनोग्राफी भी एक ऐसा विशेष विज्ञान है। दरअसल यह उन सभी विज्ञानों का अध्ययन है जो ओशन यानी समुद्र से जुड़े हुए हैं ताकि समुद के बारे में जुड़ी तमाम चीजों को समझने में इंसान की मदद हो सके। समुद्र कैसे बने और उनमें परिवर्तन किस तरह आते हैं। सीधा सा मतलब है ओशनोग्राफी का संबंध समुद्र के अध्ययन से है। यह अध्ययन कोई आसान काम नहीं है। मनुष्य की हिम्मत तथा जज्बे की कोई सीमा नहीं है। आज खोजी मनुष्य उच्चतम तकनीक तथा नवीनतम विज्ञान से लैश होकर धरती, आकाश, पाताल, अन्तरिक्ष तथा सारे ब्रह्माण्ड को खंगाल रहा है। धरती में पलने वाले प्रत्येक जीव के लिए कुदरत ने सभी चीजें भरपूर मात्रा में भर रखी हैं। मनुष्य विवेकी बनकर करोड़ों वर्षों से सजोयी धरती के संसाधनों तथा प्रत्येक जीव का सम्मान करें। आने वाले वर्षों में हमें अपना परिचय पृथ्वी वासी के रूप में देना होगा। मानव जाति को समझदार तथा विवेकी बनने की तैयारी प्रतिक्षण तथा प्रतिदिन करना है। तभी हम धरती के बाहर ग्रह-नक्षत्रों में निवास करने वाली विकसित सभ्यताओं से मधुर संबंध बना सकेंगे।

भारत ने बंग्लौर में आयोजित हुए विश्व के 21 देशों के 30 प्रवासी भारतीयों को प्रवासी भारतीय सम्मान से अलंकृत किया जिनमें गोवा मूल के पुर्तगाल के प्रधानमंत्री डा0 एंटोनिया कोस्टा, माॅरीशस के वित्त मंत्री प्रविन्द जगन्नाथ, अमेरिका के ओबामा प्रशासन में सहायक मंत्री निशा बिस्वाल तथा ट्रिनिडाड टोबेगो के पूर्व मंत्री एवं अर्थशास्त्री विन्स्टन दूकेरन शामिल हैं। विश्व के अधिकांश देशों में भारतीय मूल के लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारतीय मूल के लोगों की लोकप्रियता सारे विश्व में बढ़ रही है। वे जिस भी देश में कार्यरत हैं उस देश के साथ पूरी बफादारी का अनुकरणीय आचरण प्रस्तुत कर रहे हैं। विश्व में एकता तथा शान्ति फैलाने में प्रवासी भारतीयों का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रवासी भारतीयों को अधिक से अधिक सम्मानित किया जाना चाहिए। जिस तरह भारतीय दुनिया में किसी भी देश में अथवा किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने में कामयाब होते हैं क्योंकि उनमें धैर्य और प्रतिभा का अद्भुत सामंजस्य है। वहीं भारतीयों के डीएनए में ही किसी भी देश के साथ घुल-मिल कर रच-बस जाने की विशेषता है। भारत ही निकट भविष्य में विश्व की एक न्यायपूर्ण व्यवस्था बनाकर मानव सभ्यता को विकास की चरम ऊँचाइयों पर स्थापित करेगा।

प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक
पता– बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2
एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ-226025
मो. 9839423719