आध्यात्मिक संतुष्टि की अनुभूति शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती!
(1) आध्यात्मिक संतुष्टि की अनुभूति शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती:
परमात्मा को समर्पित करके, एकाग्रचित्त होकर तथा पवित्र हृदय से अपनी नौकरी या व्यवसाय करने से निरन्तर गजब की आध्यात्मिक संतुष्टि की प्राप्ति होती है। आध्यात्मिक संतुष्टि का स्वाद तो ‘‘गूँगे व्यक्ति का गुड़’’ खाने के समान है। गूँगा व्यक्ति गुड़ के स्वाद को तो महसूस कर सकता है लेकिन उसे अपनी वाणी के द्वारा व्यक्त नहीं कर सकता। गुड़ खाने वाले गूँगे व्यक्ति के आत्मिक सुख को उसके हाव-भाव तथा उसके हँसते हुए चेहरे से ही जाना जा सकता है। ईश्वरीय गुणों को ग्रहण तथा प्रस्फूटित करने के लिए निरन्तर प्रयास तथा अनंत धैर्य चाहिए। ईश्वर को हम लोग बाहर ढूंढ़ते हैं जबकि ईश्वर तो हमारे पवित्र हृदय में वास करता है। हम संसार में सेवा भावना से वास करें किंतु उससे प्रभावित न हों तो हमें परमात्मा द्वारा रचित उसकी इस सृष्टि में उनका दिव्य स्वरूप दिखाई देगा। इसलिए हमें अपने अन्दर के ईश्वरीय गुणों की सुगन्ध को प्रस्फुटित होने देना चाहिए। गुणों की यह सुगन्ध ही हमें स्थायी तृप्ति प्रदान करती है।