(1) आध्यात्मिक संतुष्टि की अनुभूति शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती:

परमात्मा को समर्पित करके, एकाग्रचित्त होकर तथा पवित्र हृदय से अपनी नौकरी या व्यवसाय करने से निरन्तर गजब की आध्यात्मिक संतुष्टि की प्राप्ति होती है। आध्यात्मिक संतुष्टि का स्वाद तो ‘‘गूँगे व्यक्ति का गुड़’’ खाने के समान है। गूँगा व्यक्ति गुड़ के स्वाद को तो महसूस कर सकता है लेकिन उसे अपनी वाणी के द्वारा व्यक्त नहीं कर सकता। गुड़ खाने वाले गूँगे व्यक्ति के आत्मिक सुख को उसके हाव-भाव तथा उसके हँसते हुए चेहरे से ही जाना जा सकता है। ईश्वरीय गुणों को ग्रहण तथा प्रस्फूटित करने के लिए निरन्तर प्रयास तथा अनंत धैर्य चाहिए। ईश्वर को हम लोग बाहर ढूंढ़ते हैं जबकि ईश्वर तो हमारे पवित्र हृदय में वास करता है। हम संसार में सेवा भावना से वास करें किंतु उससे प्रभावित न हों तो हमें परमात्मा द्वारा रचित उसकी इस सृष्टि में उनका दिव्य स्वरूप दिखाई देगा। इसलिए हमें अपने अन्दर के ईश्वरीय गुणों की सुगन्ध को प्रस्फुटित होने देना चाहिए। गुणों की यह सुगन्ध ही हमें स्थायी तृप्ति प्रदान करती है। 

आचार्य के एक वैष्णव परिवार में जन्मे, उन्होंने भगवान के दूत के रूप में जिम्मेदारियों को ले लिया है, और उनके सम्मानित दादा दादी, आचार्य मूल बिहारी शास्त्रीजी और श्रीमती शांती गोस्वामीजी और उनके पिता और पूज्य गुरुदेव, आचार्य का सम्मान करके अपने परिवार की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया है। मृदुल कृष्ण शास्त्रीजी ने नम्रता से उनके नक्शेकदम पर चलते हुए

सरकारी बजट में विभिन्न क्षेत्रों का व्यापक ध्यान रखा जाता है फिर भी बजट में शिक्षा व्यवस्था का खास ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रायः अधिकांश देशों में शिक्षा का बजट रक्षा से कम होता है, यदि शिक्षा का बजट रक्षा से ज्यादा हो और सही ढंग से इसका प्रयोग हो तो रक्षा की तो जरूरत ही न पड़े। बजट ऐसा हो कि जिससे प्रत्येक युवा को नौकरी या व्यापार शुरू करने में दौड़-भाग न करनी पड़े, क्योंकि इससे व्यक्ति का मनोबल क्षीण होता है। शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है जिसके द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। युद्ध के विचार सबसे पहले मानव के मस्तिष्क में पैदा होते हैं। मानव के मस्तिष्क में शान्ति के विचार डालने होंगे। शान्ति के विचार देने के सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। आज संसार में जो भी मारामारी हो रही है उसके लिए आज की शिक्षा दोषी है। सारे विश्व के प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से शान्ति की शिक्षा मिलनी चाहिए।

वाराणसी आईआईटी बीएचयू के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद ‘इन्फर्नो’ नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास्तों पर चलने में सक्षम है। तीन लाख रूपये की लागत से तैयार इस कार को मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों की टीम ने सहायक प्रोफेसर रश्मिरेखा साहू के मार्गदर्शन में किया। अब यह छात्र चाहते हैं कि यह कार देश की सुरक्षा में तैनात भारतीय सेना के काम भी आए। इससे पहले यह इन्फर्नो इंदौर में सोसायटी आॅफ आॅटोमोटिव इंजीनियरिंग में पहला पुरस्कार जीत चुकी है। इस कार में 305 सीसी ब्रिग्स और स्ट्रैटन इंजन लगा है जो उसे रफ्तार देने में मदद करता है। इसके साथ ही ड्राइवर की सुरक्षा और कन्फर्ट का भी ख्याल रखा गया है। 50 डिग्री के पहाड़ पर भी यह कार चल सके, इसके लिए आगे के पहियों को बड़ा रखा गया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने माना था कि पिछली 20वीं सदी रक्तपात से भरी खूनी सदी थी। पिछली सदी में प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्धों का महाविनाश हुआ। इसके अलावा विभिन्न देशों के बीच अनेक युद्ध हुए। आतंकवाद की घटनाओं में मासूमों का खून बहाया गया। पंजाब केसरी में प्रकाशित एक लेख के अनुसार रूसी क्रान्ति के 100 सालों पर आज सोवियत संघ के प्रमुख मिखाइल गोर्बाच्योव यह साफ शब्दों में मान रहे हैं कि नेताओं ने सत्ता पाने के लिए जो किया वह उन्हें नहीं करना चाहिए था। गोर्बाच्योव के खुलापन और पुनर्निर्माण यही दो जुमले थे, जिन्होंने 73 साल पुराने और दुनिया के सबसे मजबूत व अभेद्य लौह किले को ताश के पत्तों की तरह ढहा दिया। वास्तव में 25 साल पहले जब क्रेमलिन में सोवियत संघ का झंडा आखिरी बार झुका था, उसके बाद वह झंडा हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास की धरोहर बन गया। बड़े-बड़े अनुमान लगाये गये थे, बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगायी गई कि लोकतंत्र की हवा बहते ही रूस दुनिया का सरताज बन जायेगा लेकिन 1991 में सोवियत संघ के बिखर जाने के बाद रूस के पतन की कहानियां जिन लोगों ने पढ़ी हैं, वह बहुत ही दुखदायी है। हमारा मानना है कि नई 21वीं सदी को सभी देशों को मिलकर गुफाओं से प्रारम्भ हुई मानव सभ्यता को स्वर्णिम युग में ले जाने का साहसिक निर्णय ले लेना चाहिए। यहीं आज मानवता की पुकार है।

बचपन से बाबाजी की ईश्वर की प्राप्ति के लिए एक मजबूत जुनून था और केवल इस निरंतर और भव्य इच्छा के कारण बाबाजी ईश्वरीय परमात्मा के साथ एक हो गए।

देश के प्रथम उप-प्रधानमंत्री लोहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल ने पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर कहा था कि भारत के इतिहास का एक नया अध्याय हमारे सामने खुल रहा है। हमारे पास अपने आप को बधाई देने की वजह है कि हम सब इस मुबारक मौके के भागीदार बन रहे हैं। यह हमारे लिए गर्व का भी अवसर है। लेकिन इस गौरव बोध और जश्न के साथ हमें अपने कर्तव्यों और दायित्वों को भी याद रखने की जरूरत है। हमें अपने-अपने दिल व दिमाग को साफ करके खुद से, नए गणराज्य से और देश से यह वादा करना चाहिए कि हम ईमानदार आचरण करेंगे। हमें याद रखने की जरूरत है कि हम कौन हैं, हमें क्या विरासत मिली है और हमने क्या हासिल किया है? 

बौद्ध वाड्मय जातक की एक कथा है| एक बार वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त अपनी न्यूनता और दोष ढूँढने के लिए उत्तर भारत के कई नगरों में गए| उन्हें उनके दोष कहने वाला कही कोई नहीं मिला|

महाराज श्री का जन्म 1982 में जोधपुर में शरद पूर्णिमा के पवित्र दिन श्री हरिश्चंद्र और श्रीमती मंजूलाटा से हुआ था। उन्हें पहले राधाकृष्ण नामित किया गया था, इसलिए उन्होंने अपने बचपन से अपने माता-पिता के नैतिक मूल्यों को प्राप्त करना शुरू कर दिया था। नतीजतन, उन्होंने अपने दादा दादी के साथ सत्संग में भाग लेना शुरू किया और पूरी रुचि और कुल भक्ति के साथ।