लखनऊ में 3 दिसम्बर 2016 को घटित एक समाचार के अनुसार कैथेड्रिल सीनियर सेकंेडरी स्कूल, लखनऊ के कक्षा 12 के पढ़ाई में टाॅपर छात्र ललित यादव ने पिता की लाइसंेसी रिवाॅल्वर से गोली मारकर मौत को गले लगा लिया। लखनऊ के मड़ियांव थाना क्षेत्र के केशवनगर में रहने वाले अमरनाथ यादव एसपी लखीमपुर के पेशकार है। परिजनों के मुताबिक, रोजाना की तरह ललित अपने छोटे भाई सुमित के साथ अपनी अपाचे बाइक से 3 दिसम्बर की सुबह भी स्कूल पढ़ने के लिए गए थे। छात्र के स्कूल पहुंचने के बाद प्रिन्सिपल फादर ने उसके पिता को फोन किया और बताया कि ललित ने अपनी बाइक से एक छात्रा के रिक्शे में टक्कर मार दी है। उस टक्कर लगने से रिक्शे पर बैठी छात्रा और उसका चालक सड़क पर गिर गये थे। प्रिन्सिपल की डांट से क्षुब्ध छात्र ललित ने घर आकर खुदकुशी कर ली। इस दुखद के घटना में दिवंगत छात्र ललित की आत्मा की शान्ति के लिए हम प्रार्थना करते हैं। परमपिता परमात्मा इस अपार दुःख को सहन करने की उनके परिवारजनों को शक्ति प्रदान करें।  

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की मूल शिक्षा ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की भावना पर आधारित भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 विश्व एकता का संदेश देता है। संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुसार भारत का गणराज्य (क) अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि करेगा, (ख) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बढ़ाने का प्रयत्न करेगा, (ग) संसार के सभी राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करें ऐसा प्रयत्न करेगा तथा (घ) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निबटारा माध्यस्थम् द्वारा हो का प्रोत्साहन देेगा। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रित देश में धर्म निरपेक्ष तथा अनूठे संविधान का 26 जनवरी 1950 को जन्म हुआ था। देश के 125 करोड़ भारतीय के लिए यह एक सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व है। गणतन्त्र दिवस के पावन पर्व पर सभी भारतीयों को अपने महान संविधान के अनुच्छेद 51 पर चिन्तन, मनन व मंथन करना चाहिए। संविधान में समाहित ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना को सारे विश्व के विभिन्न देशों में स्थित भारतीय दूतावासों के माध्यम से प्रसारित करने का यह दिवस है। भारतीय संविधान की पुस्तक विश्व के सभी देशों के राष्ट्रध्यक्षों तथा शासनाध्यक्षों को भेंट की जानी चाहिए। 

उनका जन्म 2 जून 1937 को उत्तरी बिहार के सीतामढ़ी जिले के मुबारकपुर में हुआ था। उन्होंने हिंदी में एम.ए. किया, साथ ही पीएचडी, साहित्य रत्न और साहित्य विश्वार भी थे।

जीवन में मिलने वाले सभी दुःखों का कारण हम परमात्मा को मान लेते हैं:-

जिंदगी में कई बार हम बहुत खुश होते हैं तो कभी दुःखी हो जाते हैं। जब हम सुख में रहते हैं तो इसकी वजह हम अपने को व अपनी योग्यता को मानते हैं, लेकिन जब हम दुःख में रहते हैं तो इसका कारण हम परमात्मा को मान लेते हैं। तब हम कहने लगते है कि यह सब परमात्मा की देन है। वास्तव में अगर हम अपने जीवन के पिछले कुछ वर्षो को देखें तो हम पायेंगे कि इस समय में हमें सुख भी आया और दुःख भी आया। लेकिन हमें याद केवल दुःख ही रहते हैं। एक कहानी है कि एक बार एक व्यक्ति का सब कुछ चला गया। उसकी नौकरी भी चली गई। जिंदगी से हताश होकर उस व्यक्ति ने आत्महत्या करने की सोची और जंगल की तरफ चल दिया। जंगल में पहुँच कर उस व्यक्ति ने सोचा कि आत्महत्या करने से पहले मैं एक बार परमात्मा की प्रार्थना अवश्य करूगाँ। उनसे आखरी बार बातचीत करूगाँ और उसके बार मैं अपने जीवन का अन्त कर लूँगा।

एक विधवा बंगालिन थी| वह अपनी पुत्री का विवाह करना चाहती थी, परंतु उसके विधवा होने के कारण कोई भी भद्र समाज का पंडित उसकी पुत्री का विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता था, क्योंकि उन पंडितों को विधवा की पुत्री का विवाह कराने के कारण समाज से बहिष्कृत होने का डर था|

प्राचीन काल से भारत पवित्र लोगों और महान आत्मा का देश रहा है, और कई भिक्षुओं का जन्म स्थान बना रहा है। जब भी धरती पर धर्मी, न्याय और धर्म का नुकसान होता है, भगवान अपनी पवित्र आत्मा को अन्याय और अनैतिकता को समाप्त करने और लोगों, समाज और इस दुनिया को भगवान की शिक्षाओं से उजागर करने के लिए भेजता है ताकि वे एक संतुलित जीवन जी सकें।

श्री ठाकुरजी के दादा, श्री भूपेदेवजी उपाध्याय ने रामायण और कृष्ण चरित्र से कहानियों के साथ युवा उम्र में उन्हें प्रसन्न किया। ठाकुरजी इन कहानियों से उत्साहित थे और एकमात्र दिमाग की भक्ति के साथ सुनी।

यदि हमारे अंदर पुराने का आग्रह है तो जीवन में सब पुराना हो जाएगा। जीवन मंे यदि हम पुराने का आग्रह छोड़ दें तो इस नये वर्ष 2017 का प्रत्येक दिन नया दिन तथा प्रत्येक क्षण नया क्षण होगा। कोई व्यक्ति जो निरंतर नए में जीने लगे, तो उसकी खुशी का हम कोई अंदाजा नहीं लगा सकते। हमारे अंदर यह जज्बा होना चाहिए कि इस क्षण में नया क्या है? यदि यह जज्बा हो तो ऐसा कोई भी क्षण नहीं है, जिसमें कुछ नया न आ रहा हो। हम नए को खोजें, थोड़ा देखें कि यह ऊर्जावान तथा जीवनदायी सूरज कभी उगा था? हम चकित खड़े रह जाएंगे कि हम अब तक इस भ्रम में ही जी रहे थे कि रोज वही ऊर्जावान तथा जीवनदायी सूरज उगता है। हम अपने जीवन में निरन्तर यह खोज जारी रखे कि नया क्या है? हमारा फोकस पुराने पर है या नये पर है यह इस बात पर सब कुछ निर्भर करता है। हम हर चीज में नया खोजने का स्वभाव विकसित करे। हमारा पूरा फोक्स नई वस्तुओं से जीवन को नया करने पर नहीं वरन् स्वयं के दृष्टिकोण को नया करने पर होना चाहिए। प्रत्येक क्षण को नया बनाने के इस विचार को हकीकत में बदलने की क्षमता ही नेतृत्व की असली विशेषता है।