(1) प्रकृति से खिलवाड़ के भयंकर परिणाम होगे!

धरती का अस्तित्व रखने वाले सभी जीवों का प्रकृति से सीधा संबंध है। प्रकृति में हो रही उथल-पुथल का प्रभाव सब पर पड़ता है। मनुष्य की छेड़छाड़ की वजह से प्रकृति रौद्ररूप धारण कर लेती है। मानव को समझ लेना चाहिए कि वह प्रकृति से जितना खिलवाड़ करेगा, उतना ही उसे नुकसान होगा। मानव ने पर्यावरण को प्रदूषित किया है, वनों को काटा है, जल संसाधनों का दुरूपयोग किया है। सुनामी हो या अमेरिका के कुछ शहरों को तबाह करने वाला तूफान, सब का कारण प्रकृति से छेड़छाड़ ही है। ओजोन परत में छेद व वातावरण में बढ़ते कार्बन डाई आॅक्साइड की वजह से ग्लोबल वार्मिग का खतरनाक संकेत है। मानव प्रकृति से छेड़छाड़ कर अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना बंद करे। आज इंसान ने इस जमीं पर मौत का आशियाॅ बनाया। यू तो कदम चाँद पर, जा पहुँचे है लेकिन जमीं पर चलना न आया। धरती को प्रदुषण के महाविनाश से बचाना आज के युग का सबसे बड़ा पुण्य है।

उनका जन्म 1961 में एक उच्च सभ्य, सम्माननीय, ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह न केवल आध्यात्मिक क्षेत्र में कुशल है बल्कि पीएच.डी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय इतिहास में वह अखिल भारती युवा फाउंडेशन वृंदावन, भारत के संस्थापक हैं, जो भी यू.एस.ए. में पंजीकृत हैं।

शाश्वत सिद्धांतों की तार्किक रूप से व्याख्या की उनकी क्षमता और सिद्धांत के साथ सिद्धांत के साथ धर्म के लागू होने के पहलू पर ध्यान केंद्रित करने से कहें कि वह एक बुद्धि है वह न केवल समझाता है बल्कि दैनिक जीवन में इन समय-परीक्षण वाले सिद्धांतों को एक अमीर और सभ्य जीवन जीने के तरीकों का सुझाव भी देता है।

आज हम इंटरनेट तथा सैटेलाइट जैसे आधुनिक संचार माध्यमों से लैस हैं। संचार तकनीक ने वैश्विक समाज के गठन में अहम भूमिका अदा की है। हम समझते हैं कि मानव इतिहास में यह एक अहम घटना है। हम एक बेहद दिलचस्प युग में जी रहे हैं। आओ, हम सब मिलकर एक अच्छे मकसद के लिए कदम बढ़ाएं। पिछले कुछ साल से विभिन्न देशों की दर्दनाक घटनाएं इंटरनेट के जरिये दुनिया के सामने आ रही हैं। इनसे एक बात तो तय हो गई कि चाहे हम दुनिया के किसी भी कोने में हों, हम सब एक ही समुदाय का हिस्सा हैं। इंटरनेट ने मानव समुदाय के बीच मौजूद अदृश्य बंधनों को खोल दिया है। दरअसल हम सबके बीच धर्म, नस्ल और राष्ट्र से बढ़कर आगे भी कोई वैश्विक रिश्ता है और वह रिश्ता नैतिक भावना पर आधारित है। यह नैतिक भावना न केवल हमें दूसरों का दर्द समझने, बल्कि उसे दूर करने की भी प्रेरणा देती है। यह भावना हमें प्रेरित करती है कि अगर दुनिया के किसी कोने में अत्याचार और जुल्म हो रहा है, तो हम सब उसके खिलाफ खड़े हों और जरूरतमंदों की मदद करें। 

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पद छोड़ने से पूर्व राष्ट्र के नाम अपने आखिरी संबोधन में देश के समक्ष उत्पन्न खतरों को लेकर आगाह किया। 20 जनवरी 2017 को देश के राष्ट्रपति बनने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप को नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिकी जनता मुस्लिमों समेत सभी अल्पसंख्यकों और अश्वतों से भेदभाव सहन नहीं करेगा। ओबामा ने माना कि आर्थिक असमानता के कारण नस्लीय विभाजन में तेजी आई है। अल्पसंख्यकों और लैटिन मूल के अमेरिकी नफरती हमलों का शिकार हुए हैं। इस सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए उन्होंने ठोस कानून व्यवस्था, शिक्षा, नौकरियों और घर के अलावा हृदयों में एकता लाने की वकालत की। उन्होंने अपनी पत्नी मिशेल को बीते 25 साल से पत्नी, बच्चों की मां होने के साथ-साथ अच्छी दोस्त भी बताया। मिशेल का नाम ले वे रो पड़े। ओबामा का अपनी पत्नी के प्रति अत्यधिक सम्मान की भावना अनुकरणीय है। विश्व के एक सुलझे हुए वल्र्ड लीडर ओबामा की न्यायपूर्ण तथा हृदयों की एकता की नसीहत से अमेरिका सहित सभी देशों को सीख लेनी चाहिए।

(1) शरीर को प्रकृति से पोषण मिलता है तथा जीवनीय शक्ति आत्मा से मिलती है:-

पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु इन पंचतत्वों से इस शरीर की रचना हुई है। शरीर को रोजाना पौष्टिक भोजन देकर तथा पंचतत्वों में संतुलन रखकर हम उसे लम्बी आयु तक हष्ट-पुष्ट तथा निरोग रखते है। लेकिन हम आत्मा को हर पल भोजन न देने की सबसे बड़ी भूल कर बैठते है। इस कारण से आत्मा कमजोर तथा मलिन हो जाती है। हमें यह ज्ञान होना चाहिए कि आत्मा का भोजन क्या है? आत्मा का भोजन लोक कल्याण की पवित्र भावना से अपनी नौकरी या व्यवसाय द्वारा हर पल अपनी आत्मा का विकास करके शरीर को जीवनीय शक्ति देना है। इस प्रयास से आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप शुद्ध, दयालु तथा ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित बनी रहती है। ऐसी पूर्णतया गुणात्मक आत्मा शरीर की मृत्यु के पश्चात् प्रभु मिलन की अपनी अंतिम मंजिल को प्राप्त करती है। मनुष्य द्वारा अपवित्र कार्यों द्वारा मलिन की गयी गुणविहीन कमजोर आत्मा प्रभु मिलन की अपनी अंतिम मंजिल को प्राप्त न करने के कारण युगों-युगों तक विलाप करती है। 

संत राजिंदर सिंह जी महाराज का कहना है कि आध्यात्मिकता यह मान्यता है कि बाहरी नामों और लेबल से हम आत्मा हैं, एक निर्माता का एक हिस्सा। जैसे, हम सभी एक बड़े परिवार के सदस्य हैं।

प्लासी के युद्ध-क्षेत्र में एक ओर बंगाल-बिहार के सूबेदार नवाब सिराजुद्दौला की फौज खड़ी थी| उसके मुकाबले अंग्रेजों के सेनाध्यक्ष क्लाइव की सेना थी|

स्वामी दयानंद सरस्वती का जनम १२ फरवरी १८२४ मे मोरबी (मुंबई) के पास काथियावाद शेत्र. गुजरात मे हुआ था| उनके पिता जी का नाम करशन जी लाल जी तिवारी और माँ का नाम यशोदा बाई था| ब्राह्मण परिवार मे जन्मे मूलशंकर एक अमीर , समृद्ध अथवा प्रभावशाली व्यक्ति थे| इनका प्रारंभिक जीवन बहुत आराम से बीता परन्तु पंडित बनने के लिए वे संस्कृत , वेद , शास्त्रों एवं अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्यन मे लग गए|