अध्याय 1
1 [ज]
एवं निपतिते कर्णे समरे सव्यसाचिना
अल्पावशिष्टाः कुरवः किमकुर्वत वै दविज
1 अर्जुन उवाच
जयायसी चेत कर्मणस ते मता बुद्धिर जनार्दन
तत किं कर्मणि घॊरे मां नियॊजयसि केशव
“Sanjaya said, ‘Beholding his own army routed while being slaughtered bythose illustrious heroes, thy son, well-acquainted with words, O monarch,quickly repairing unto Karna and Drona, that foremost of all victors inbattle, wrathfully said these words,
1 [स]
दुःशासने तु निहते पुत्रास तव महारथाः
महाक्रॊधविषा वीराः समरेष्व अपलायिनः
दश राजन महावीर्यॊ भीमं पराच्छादयञ शरैः
“Vaisampayana said, ‘After a while, another powerful son of Pandu wasseen making towards king Virata in haste. And as he advanced, he seemedto everyone like solar orb emerged from the clouds.
बहुत समय पहले की बात है| एक गुरु अपने शिष्यों के साथ घूमने जा रहे थे| वे अपने शिष्यों से बहुत स्नेह करते थे और उन्हें सदैव प्रकृति के समीप रहने की शिक्षा दिया करते थे|
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||
एक बाबाजी घूमते-फिरते एक शहर में पहुँचे| रात हो गयी थी| सरदी के दिन थे| शहर का दरवाजा बंद हो गा था| बाबाजी को ठण्ड लगी| गरम कपड़ा पास में था नहीं| बाबा जी ने सोने के लिये जगह देखी| एक भड़भूँजे की भट्ठी थी|
“Sanjaya said, ‘Then Vasudeva, stationed on the car, addressed Karna,saying, “By good luck it is, O son of Radha, that thou rememberestvirtue! It is generally seen that they that are mean, when they sink intodistress, rail at Providence but never at their own misdeeds.