अध्याय 1
0 नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरॊत्तमम
देवीं सरस्वतीं चैव ततॊ जयम उदीरयेत
पवनपुत्र हनुमान बाल-ब्रह्मचारी थे। लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता है। यह कथा उसी मकरध्वज की है।
एक बार की बात है| हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्य के लेखक ‘श्रीराम शर्मा’ एक बार गढ़वाल-टिहरी के एक स्थान पर ठहरे हुए थे कि उनके एक शिकारी मित्र ने एक बूढ़े किसान के साथ उनके पास आकर सूचना दी कि इस बूढ़े की दो गायों को एक बाघ ने मार डाला है|
“Sanjaya said, ‘Then all those kings of thy army, incapable of beingeasily defeated in battle, angrily proceeded against Yuyudhana’s car,unable to brook (his feats).
शीतला माता जी के व्रत का महा महत्व मन गया है| धार्मिक मान्येताओं के अनुसार जजों इनकी पूजा व् आरती करता है वह दैहिक और दैविक ताप से मुक्त हो जाता है| इसी व्रत से पुत्र प्राप्ति भी होती है तथा सोभाग्य प्राप्त होता है| पुत्री की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत उत्तम कहा गया है।
1 [स]
वृषसेनं हतं दृष्ट्वा शॊकामर्ष समन्वितः
मुक्त्वा शॊकॊद्भवं वारि नेत्राभ्यां सहसा वृषः
“Vaisampayana said, ‘Next appeared at the gate of the ramparts anotherperson of enormous size and exquisite beauty decked in the ornaments ofwomen, and wearing large ear-rings and beautiful conch-bracelets overlaidwith gold.
Vaisampayana said,–“Yudhishthira, having heard these words of Narada,began to sigh heavily. And, O Bharata, engaged in his thoughts about theRajasuya, the king had no peace of mind.