Chapter 10
“Narada said,–‘Possessed of great splendour, the assembly house ofVaisravana, O king, is a hundred yojanas in length and seventy yojanas inbreadth. It was built, O king, by Vaisravana himself using his asceticpower.
“Narada said,–‘Possessed of great splendour, the assembly house ofVaisravana, O king, is a hundred yojanas in length and seventy yojanas inbreadth. It was built, O king, by Vaisravana himself using his asceticpower.
एक बहुत ही सुंदर जंगल था| उसमें कई प्रकार के जानवर रहते थे| वे सभी बहुत प्रेमपूर्वक रहते थे और मिल-जुलकर काम करते थे|
“Sanjaya said, ‘Upon the fall of Karna otherwise called Vaikartana, theKauravas, afflicted with fear, fled away on all sides, casting their eyeson empty space.
1 [वै]
सुदीर्घम उष्णं निःश्वस्य धृतराष्ट्रॊ ऽमबिका सुतः
अब्रवीत संजयं सूतम आमन्त्र्य भरतर्षभ
एक वन के किसी भाग में एक वृक्ष था| उसकी एक लम्बी शाखा पर घोंसला बनाकर चटक दम्पत्ति निवास करती थी| उनका जीवन बड़ा सुखमय बीत रहा था| एक बार हेमन्त ऋतु की बात है कि एक दिन सहसा मन्द-मन्द वर्षा होने लगी| कहीं से ठण्ड में ठिठुरता हुआ एक बन्दर आकर उस वृक्ष की जड़ में बैठ गया| ठण्ड से उसके दांत किटकिटा रहे थे| उसे देखकर चिड़िया ने कहा, ‘भद्र! देखने में तुम हष्ट-पुष्ट हि लगते हो| फिर भी इतना कांप रहे हो| तुम अपना कोई घर ही क्यों नहीं बना लेते?’
“Yudhishthira said, ‘Amongst all those gifts that are mentioned in thetreatises other than the Vedas, which gift, O chief of Kuru’s race, isthe most distinguished in thy opinion? O puissant one, great is thecuriosity I feel with respect to this matter. Do thou discourse to mealso of that gift which follows the giver into the next world.'[317]
“Yudhishthira said, ‘Thou hast, O Bharata, discoursed upon the manyduties of king-craft that were observed and laid down in days of old bypersons of ancient times conversant with kingly duties.
गूलर को उदुम्बर, उम्बर, अंजेर आदम और किमुटी भी कहते हैं| गूलर की विशेषता यह है कि इसके फूल दिखाई नहीं देते| इसकी शाखाओं पर केवल फल दिखाई देते हैं|
1 [वयास]
दवन्द्वानि मॊक्षजिज्ञासुर अर्थधर्माव अनुष्ठितः
वक्त्रा गुणवता शिष्यः शराव्यः पूर्वम इदं महत
1 [दूृ]
एहि कषत्तर दरौपदीम आनयस्व; परियां भार्यां संमतां पाण्डवानाम
संमार्जतां वेश्म परैतु शीघ्रम; आनन्दॊ नः सह दासीभिर अस्तु