अध्याय 193
1 [धृ]
अहम अप्य एवम एवैतच चिन्तयामि यथा युवाम
विवेक्तुं नाहम इच्छामि तव आकरं विदुरं परति
प्राय: भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियां ब्रजगोपियों के नाम से नाक-भौं सिकोड़ने लगतीं| इनके अहंकार को भंग करने के लिए प्रभु ने एक बार एक लीला रची| नित्य निरामय भगवान बीमारी का नाटक कर पड़ गए| नारद जी आए| वे भगवान के मनोभाव को समझ गए| उन्होंने बताया कि इस रोग की औषधि तो है, पर उसका अनुपान प्रेमी भक्त की चरण-रज ही हो सकती है| रुक्मिणी, सत्यभामा सभी से पूछा गया| पर पदरज कौन दे प्रभु को| भगवान ने कहा, “एक बार ब्रज जाकर देखिए तो|”
1 भीष्म उवाच
ततॊ रात्र्यां वयतीतायां परतिबुद्धॊ ऽसमि भारत
तं च संचिन्त्य वै सवप्नम अवापं हर्षम उत्तमम
1 [वैषम्पायन]
अर्जुनस्य वचॊ शरुत्वा भीमसेनॊ ऽतय अमर्षणः
धैर्यम आस्थाय तेजस्वी जयेष्ठं भरातरम अब्रवीत
धृतराष्ट्र के एक वैश्य वर्ण की पत्नी थी| उसी के गर्भ से युयुत्सु का जन्म हुआ था| युयुत्सु का स्वभाव गांधारी के सभी पुत्रों से बिलकुल अलग था| वह आपसी कलह और विद्वेष का विरोधी था और सदा धर्म और न्याय की बातें करता था, लकिन चूंकि सत्ता गांधारी के पुत्रों के हाथ में थी, इसलिए कोई भी इसकी नहीं सुनता था|
“Arjuna said, ‘O Janardana, Yudhishthira hath already said what should besaid. But, O chastiser of foes, hearing what thou hast said, it seemethto me that thou, O lord, does not think peace to be easily obtainableeither in consequence of Dhritarashtra’s covetousness or from our presentweakness.
पुराण में एक बहुत सुन्दर कथा आती है| एक जंगल में एक तालाब था| उस जंगल के पशु उसी तालाब में पानी पीने आया करते थे| एक दिन एक शिकारी उस तालाब के पास आया| उसने तालाब में हाथ-मुँह धोकर पानी पिया|
“Yudhishthira said, ‘O Bhima, let this mighty and heroic Rakshasa chief,thy legitimate son, devoted to us, and truthful, and conversant withvirtue carry (his) mother (Draupadi) without delay. And, O possessor ofdreadful prowess, depending on the strength of thy arms, I shall reachthe Gandhamadana, unhurt, together with Panchala’s daughter.'”