अध्याय 250
1 [वै]
अथाब्रवीद दरौपदी राजपुत्री; पृष्टा शिबीनां परवरेण तेन अ
अवेक्ष्य मन्दं परविमुच्य शाखां; संगृह्णती कौशिकम उत्तरीयम
1 [वै]
अथाब्रवीद दरौपदी राजपुत्री; पृष्टा शिबीनां परवरेण तेन अ
अवेक्ष्य मन्दं परविमुच्य शाखां; संगृह्णती कौशिकम उत्तरीयम
1 [वैषम्पायन]
ततः स च हृषीकेशः स च राजा युधिष्ठिरः
कृपादयश च ते सर्वे चत्वारः पाण्डवाश च ह
लक्ष्मीनारायण बहुत भोला लड़का था| वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था| दादी उसे नागलोक, पाताल, गन्धर्वलोक, चन्द्रलोक, सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी|
“Janamejaya said, ‘O Brahmana, it behoveth thee to relate to meeverything about the birth of Kripa. How did he spring from a clump ofheath? Whence also did he obtain his weapons?’
1 [व]
वासुदेवस्य तद वाक्यम अनुस्मृत्य युधिष्ठिरः
पुनः पप्रच्छ वार्ष्णेयं कथं मन्दॊ ऽबरवीद इदम
“Sanat-sujata said, ‘Sorrow, anger, covetousness, lust, ignorance,laziness, malice, self-importance, continuous desire of gain, affection,jealousy and evil speech,–these twelve, O monarch, are grave faults thatare destructive of men’s lives.
भगवान श्रीराम जब समुद्र पार कर लंका जाने के लिए समुद्र पर पुल बांधने में सलंग्न हुए, तब उन्होंने समस्त वानरों को संकेत दिया कि, ‘वानरो ! तुम पर्वतों से पर्वत खण्ड लाओ जिससे पुल का कार्य पूर्ण हो जाए|’ आज्ञा पाकर वानर दल भिन्न-भिन्न पर्वतों पर खण्ड लाने के लिए दौड़ पड़े और अनेक पर्वतों से बड़े-बड़े विशाल पर्वत खण्डों को लाने लगे| नल और नील जो इस दल में शिल्पकार थे, उन्होंने कार्य प्रारंभ कर दिया|