Home2011 (Page 448)

1 [स] केशवस्य तु तद वाक्यं कर्णः शरुत्वा हितं शुभम
अब्रवीद अभिसंपूज्य कृष्णं मधु निषूदनम
जानन मां हिं महाबाहॊ संमॊहयितुम इच्छसि

एक राजकुँअर थे| स्कूल में पढ़ने के लिए जाते थे| वहाँ प्रजा के बालक भी पढ़ने जाते थे| उनमें से पांच-सात बालक राजकुँअर के मित्र हो गये| वे मित्र बोले-‘आप राजकुँअर हो, राजगद्दी के मालिक हो| आज आप प्रेम और स्नेह करते हो, लेकिन राजगद्दी मिलने पर ऐसा ही प्रेम निभाएंगे, तब हम समझेंगे कि मित्रता है, नहीं तो क्या है?’ राजकुँवर बोले कि अच्छी बात है|