अध्याय 88
1 [स]
परयाते तव सैन्यं तु युयुधाने युयुत्सया
धर्मराजॊ महाराज सवेनानीकेन संवृतः
परायाद दरॊण रथप्रेप्सुर युयुधानस्य पृष्ठतः
1 [स]
परयाते तव सैन्यं तु युयुधाने युयुत्सया
धर्मराजॊ महाराज सवेनानीकेन संवृतः
परायाद दरॊण रथप्रेप्सुर युयुधानस्य पृष्ठतः
1 [य]
मुह्यामीव निशम्याद्य चिन्तयानः पुनः पुनः
हीनां पार्थिव संघातैः शरीमद्भिः पृथिवीम इमाम
1 [जनम]
वसमानेषु पार्थेषु वने तस्मिन महात्मसु
धार्तराष्ट्रा महेष्वासाः किम अकुर्वन्त सत्तम
1 [भीस्म]
नित्यॊद्युक्तेन वै राज्ञा भवितव्यं युधिष्ठिर
परशाम्यते च राजा हि नारीवॊद्यम वर्जितः
“‘Vasishtha said, I have thus far discoursed to thee on the Sankhyaphilosophy. Listen now to me as I tell thee what is Vidya (knowledge) andwhat is Avidya (Ignorance), one after the other.
1 [वै]
ते परतस्थुः पुरस्कृत्य मातरं पुरुषर्षभाः
समैर उदङ्मुखैर मार्गैर यथॊद्दिष्टं परंतपाः
एक गांव में एक बूढ़ा किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था | उसका एक छोटा-सा खेत था | उस खेत में ही कुछ सब्जियां बोकर और उन्हें बेचकर किसान अपना व अपनी पत्नी का गुजारा करता था |
“Vaisampayana said, ‘Thus addressed, Kunti replied unto her heroic lord,king Pandu, that bull amongst the Kurus, saying, ‘O virtuous one, itbehoveth thee not to say so unto me. I am, O thou lotus-eyed one, thywedded wife, devoted to thee.