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श्री गुरु तेग बहादर जी जब गाँव मूलोवाल पहुँचे तो मईया व गोदे ने आपकी खूब सेवा की| गुरु जी को बहुत प्यास लगी| उन्होंने पीने के लिए पानी मंगवाया| परन्तु पानी बहुत खारा था| गुरु जी ने उनसे पूछा कि यहाँ कोई मीठे पानी का कूआँ नहीं है? तब मईया ने कहा कि महाराज! मीठे पानी का कूआँ गाँव से बहुत दूर है| यदि आप हुक्म करो तो वहाँ से मीठा पानी ले आऊँ|  

एक दिन एक पीर जी कि रोपड़ में रहता था अपने मुरीदो से कार भेंट लेता हुआ आनंदपुर आया| गुरु जी के दरबार की महिमा संगत का आना-जाना तथा लंगर चलता देख वह बड़ा प्रभावित हुआ| उसने एक सिख से पूछा यह किस गद्दी का गुरु है? सिख ने कहा यह गुरु नानक साहिब जी की गद्दी पर बैठे नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादर जी हैं|

राजा जयसिंह की रानी ने जब यह सुना कि बाल गुरु जी शक्तिवान हैं तो उसने आपको भोजन खिलाने के लिए महलों में बुलाया| रानी गुरु जी की शक्ति को परखना चाहती थी| इस मकसद से रानी ने सेविकाओं वाले वस्त्र पहन लिए और उनके बीच में जाकर बैठ गई| अन्तर्यामी गुरु जी जब अपनी माता सहित राजा के महल में गए तो सभी सेविकाओं ने आपको माथा टेका और बैठ गई|

राजा जयसिंह ने जब बादशाह को यह बताया कि गुरु जी ने मेने बंगले में निवास कर लिया है तो दूसरे ही दिन उसने अपने शहिजादे को गुरु जी के पास भेज दिया| शहिजादे ने बादशाह की ओर से गुरु जी को भेंट अर्पण की और माथा टेका| उसने गुरु जी से यह प्रार्थना की कि बादशाह आपके दर्शन करना चाहते हैं| पर गुरु जी आगे से कहने लगे कि हमारा प्रण है कि हम किसी बादशाह के माथे नहीं लगेंगे|

पंजोखरे से चलकर और स्थान-स्थान पर संगतो को दर्शन की खुशी देते हुए गुरु हरि कृष्ण जी दिल्ली पहुँच गए| गुरु जी के रहने का प्रबंध राजा जयसिंह ने अपने बंगले में कराया| उसने गुरु जी के दिल्ली पहुँचने की खबर बादशाह को भी दे दी|

कीरतपुर से दिल्ली को जाते हुए गुरु जी अम्बाले के पास पंजोखरे गाँव में ठहरे| पंडित जो उसी गाँव के रहने वाले थे आपसे कहने लगे कि आप छोटी उम्र में ही ईश्वर अवतार और गुरु कहलाते हो| 

एक दिन गुरु हरि राय जी कुछ सिखो को साथ लेकर बाबा गुरु दित्ता जी के समाने वाले स्थान के दर्शन करने के लिए पहाड़ी पर गए| वहाँ गुरु जी काफी देर खड़े रहे और देखते रहे| जब बहुत समय ऐसे ही बीत गया तो सिखो ने गुरु जी से पूछा महाराज! आप इधर क्या देख रहे हो|

भाई भगतू का पुत्र गौरा जो की बठिंडे का राजा था गुरु हरि राय जी के आने की खबर सुनकर उनके पास पहुँचा उसने एक अच्छा घोड़ा और पांच सौ रुपये भेंट करकर गुरु जी को माथा टेका| गुरु जी ने गौरे से पूछा जिस लड़की से भाई भगतू ने अपनी मृत्यु से पहले वचन के द्वारा ही शादी की थी उसका क्या हाल है|

एक दिन काला अपने यतीम भतीजो लोहिया और संदली को साथ लेकर गुरु हरि राय जी के पास लाया| पहले उसने गुरु जी को माथा टेका फिर अपने भतीजो को ऐसा करने के लिए कहा| परन्तु वहाँ खड़े खड़े ही बच्चों के पेट बजने लगे| गुरु जी ने कहा कालेआ! यह क्या कहतें हैं|