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कुछ वर्षों पुरानी कहानी है, जब देश में रियासतें थी, पर इस कथा की सीख आज भी अमर है| एक राजा के दीवाने थे; काम करते-करते बूढ़े हो गए| वह राजा के पास पहुँचे|

1 किम आहुर दैवतं विप्रा राजानं भरतर्षभ मनुष्याणाम अधिपतिं तन मे बरूहि पिता मह 2 अत्राप्य उदाहरन्तीमम इतिहासं पुरातनम बृहस्पतिं वसु मना यथा पप्रच्छ भारत 3 राजा वसु मना नाम कौसल्यॊ धीमतां वरः महर्षिं परिपप्रच्छ कृतप्रज्ञॊ बृहस्पतिम 4 सर्वं वैनयिकं कृत्वा विनयज्ञॊ बृहस्पतेः दक्षिणानन्तरॊ भूत्वा परणम्य विधिपूर्वकम 5 विधिं पप्रच्छ राज्यस्य सर्वभूतहिते रतः परजानां

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विश्वामित्र के जाने के उपरांत राजा हरिश्चंद्र सोच में डूब गए कि ‘अब मै क्या करूं? इस अनजान नगर में कोई मुझे ॠण भ नहीं दे सकता| अब तो एक ही उपाय है की मै स्वयं को बेच दूं|’