अध्याय 69
1 [भ]
अत्रैव कीर्त्यते सद्भिर बराह्मण सवाभिमर्शने
नृगेण सुमहत कृच्छ्रं यद अवाप्तं कुरूद्वह
1 [भ]
अत्रैव कीर्त्यते सद्भिर बराह्मण सवाभिमर्शने
नृगेण सुमहत कृच्छ्रं यद अवाप्तं कुरूद्वह
जहां सरोवर रामसर है, सतिगुरु हरिगोबिंद साहिब जी के समय एक साधू शरीर पर राख मल कर वृक्ष के नीचे बैठा हुआ शिवलिंग की पूजा कर रहा था| वह घण्टियां बजाए जाता तथा जंगली फूल अर्पण करता था, वह कोई पक्का शिव भक्त था|
सुण लीजो बिनती मोरी मैं शरण गही प्रभु तेरी।
तुम तो पतित अनेक उधारे भव सागर से तारे॥
1 And the life of Sarah was a hundred and seven and twenty years. These were the years of the life of Sarah.
“Parasara said, ‘I have now discoursed to thee on what the ordinances areof the duties in respect of one that leads the domestic mode of life.
किसी गांव में एक लड़का रहता था | उसका नाम था रेम्स | रेम्स अत्यंत बातूनी लड़का था | वह अपनी बातों से अक्सर लोगों को प्रभावित कर लेता था |