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एक गांव के किनारे बनी कुटिया में एक साधु रहता था | वह दिन भर ईश्वर का भजन-कीर्तन करके समय बिताता था | उसे न तो अपने भोजन की चिंता रहती थी और न ही धन कमाने की | गांव के लोग स्वयं ही उसे भोजन दे जाते थे |