अध्याय 109
1 [सुपर्ण]
यस्माद उत्तार्यते पापाद यस्मान निःश्रेयसॊ ऽशनुते
तस्माद उत्तारण फलाद उत्तरेत्य उच्यते बुधैः
1 [सुपर्ण]
यस्माद उत्तार्यते पापाद यस्मान निःश्रेयसॊ ऽशनुते
तस्माद उत्तारण फलाद उत्तरेत्य उच्यते बुधैः
“Indra said, This whole indestructible universe, O gods, hath beenpervaded by Vritra. There is nothing that can be equal to the task ofopposing him. I was capable of yore, but now I am incapable.
विश्वामित्र से अनुमति लेकर राजा हरिश्चंद्र सैनिको के साथ अपनी राजधानी की ओर चल पड़े|
“The Brahmana enquired, ‘How is it that fire (vital force) in combinationwith the earthly element (matter), becomes the corporeal tenement (ofliving creatures), and how doth the vital air (the breath of life)according to
यह उन दिनों की बात है, जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में थे। वहां कई महत्वपूर्ण जगहों पर उन्होंने व्याख्यान दिए। उनके व्याख्यानों का वहां जबर्दस्त असर हुआ। लोग स्वामी जी को सुनने और उनसे धर्म के विषय में अधिक अधिक से जानने को उत्सुक हो उठे। उनके धर्म संबंधी विचारों से प्रभावित होकर एक दिन एक अमेरिकी प्रोफेसर उनके पास पहुंचे। उन्होंने स्वामी जी को प्रणाम कर कहा, ‘स्वामी जी, आप मुझे अपने हिंदू धर्म में दीक्षित करने की कृपा करें।’
1 [भ]
ये च गाः संप्रयच्छन्ति हुतशिष्टाशिनश च ये
तेषां सत्राणि यज्ञाश च नित्यम एव युधिष्ठिर
1 [मार्क]
ऋषयस तु महाघॊरान दृष्ट्वॊत्पातान पृथग्विधान
अकुर्वञ शान्तिम उद्विग्ना लॊकानां मॊक भावनाः