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सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है. मैहर का मतलब है मां का हार. मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है. पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है. इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है. कहा जाता है कि अल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वह भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे. इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी. इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था. माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था. आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था|

कुछ देर शांत रहने के बाद उन्होंने राजा हरिश्चंद्र से पूछा, “राजन! तुम पहले यह बताओ कि दान किसे देना चाहिए, रक्षा किसकी करनी चाहिए और युद्ध किससे करना चाहिए?”

एक बार युधिष्ठिर ने विधि-विधान से महायज्ञ का आयोजन किया। उसमें दूर-दूर से राजा-महाराजा और विद्वान आए। यज्ञ पूरा होने के बाद दूध और घी से आहुति दी गई, लेकिन फिर भी आकाश-घंटियों की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ी। जब तक घंटियां नहीं बजतीं, यज्ञ अपूर्ण माना जाता। महाराज युधिष्ठिर को चिंता हुई। वह सोचने लगे कि आखिर यज्ञ में कौन सी कमी रह गई कि घंटियां सुनाई नहीं पड़ीं। उन्होंने भगवान कृष्ण से अपनी समस्या बताई।

1 [व] तूष्णींभूते तदा भीष्मे पटे चित्रम इवार्पितम
मुहूर्तम इव च धयात्वा वयासः सत्यवती सुतः
नृपं शयानं गाङ्गेयम इदम आह वचस तदा