अध्याय 6
1 [दरुपद]
भूतानां पराणिनः शरेष्ठाः पराणिनां बुद्धिजीविनः
बुद्धिमत्सु नराः शरेष्ठा नराणां तु दविजातयः
1 [दरुपद]
भूतानां पराणिनः शरेष्ठाः पराणिनां बुद्धिजीविनः
बुद्धिमत्सु नराः शरेष्ठा नराणां तु दविजातयः
Sanjaya said, “Arjuna covered with his straight shafts the mightycar-warrior Salya who was struggling vigorously in battle.
“Vaisampayana said, ‘After the expiry of the period of his vow, Kacha,having obtained his preceptor’s leave, was about to return to the abodeof the celestials, when Devayani, addressing him, said, ‘O grandson ofthe Rishi Angiras, in conduct and birth, in learning, asceticism andhumility, thou shinest most brightly.
Markandeya continued, “When Skanda had bestowed these powers, Swahaappeared to him and said, ‘Thou art my natural son,–I desire that thoushalt grant exquisite happiness to me.”
एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ किसी पर्वतीय स्थल पर ठहरे थे। शाम के समय वह अपने एक शिष्य के साथ भ्रमण के लिए निकले। दोनों प्रकृति के मोहक दृश्य का आनंद ले रहे थे। विशाल और मजबूत चट्टानों को देख शिष्य के भीतर उत्सुकता जागी। उसने पूछा, ‘इन चट्टानों पर तो किसी का शासन नहीं होगा क्योंकि ये अटल, अविचल और कठोर हैं।’ शिष्य की बात सुनकर बुद्ध बोले, ‘नहीं, इन शक्तिशाली चट्टानों पर भी किसी का शासन है।
देवमाता दिति के दोनों दैत्यपुत्रों को भगवान विष्णु ने मार दिया| वे अपने सौतेले पुत्र इन्द्र से नाराज थीं, क्योंकि| उन्ही के सुरक्षा के लिए उनके पुत्र मारे गए थे| गुस्से में उन्होंने एक ऐसे पुत्र को जन्म देने का निश्चय किया, जो देवराज इन्द्र को मार सके|