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पंडित पुरचुरे शास्त्री महाराष्ट्र प्रदेश के शास्त्रों के बड़े पंडित थे, परंतु वह महारोग कोढ़ से पीड़ित हो गए थे, फलतः अपनी कुरुपती के बावजूद, परिवार, समाज, जनसमाज से लगभग उपेक्षित हो गए थे|

सुरंग के रास्ते लाक्षागृह से निकल कर पाण्डव अपनी माता के साथ वन के अन्दर चले गये। कई कोस चलने के कारण भीमसेन को छोड़ कर शेष लोग थकान से बेहाल हो गये और एक वट वृक्ष के नीचे लेट गये। माता कुन्ती प्यास से व्याकुल थीं इसलिये भीमसेन किसी जलाशय या सरोवर की खोज में चले गये। एक जलाशय दृष्टिगत होने पर उन्होंने पहले स्वयं जल पिया और माता तथा भाइयों को जल पिलाने के लिये लौट कर उनके पास आये। वे सभी थकान के कारण गहरी निद्रा में निमग्न हो चुके थे अतः भीम वहाँ पर पहरा देने लगे।

यूनान के विवरण में लिखा है कि सिकंदर के शासन के विरुद्ध भारत का बुद्धिजीवी वर्ग अपना उग्र रोष हर दृष्टि से प्रकट करने के लिए तत्पर था| सिकंदर के विरुद्ध एक भारतीय राजा को भड़काने वाले ब्राह्मण से यवनराज सिकंदर ने पूछा- “तुम क्यों इस राजा को मेरे विरुद्ध भड़काते हो?”