Chapter 284
“Markandeya said, “Then Prahasta, suddenly advancing up to Vibhishana anduttering a loud yell, struck him with his mace.
“Markandeya said, “Then Prahasta, suddenly advancing up to Vibhishana anduttering a loud yell, struck him with his mace.
जग मे सुंदर हैं दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम (३)
बोलो राम राम राम, बोलो शाम शाम श्याम (३)
“Bhishma said, ‘From the attribute of Passion arises delusion or loss ofjudgment. From the attribute of Darkness, O bull of Bharata’s race, arisewrath and cupidity and fear and pride.
Sanjaya said, “And Drona’s son, and Bhurisravas, and Chitrasena, O sire,and the son of Samyamani also, all fought with Subhadra’s son.
एक दार्शनिक ने पढ़ा- वास्तव में सौंदर्य ही विश्व की सबसे बड़ी विभूति है। भक्ति, ज्ञान, कर्म और उपासना आदि परमात्मा को पाने के तुच्छ मार्ग हैं। सही मार्ग तो सौंदर्य ही है।
“Dhritarashtra said, ‘O best of kings, thou shouldst also reflectproperly on war and peace. Each is of two kinds.
“Sauti said, ‘Having crossed the Ocean, Kadru of swift speed, accompaniedby Vinata, soon alighted near the horse. They then both beheld thatforemost of steeds of great speed, with body white as the rays of themoon but having black hairs (in the tail). And observing many black hairsin the tail, Kadru put Vinata, who was deeply dejected, into slavery. Andthus Vinata having lost the wager, entered into a state of slavery andbecame exceedingly sorry.
कुंती यादवों के राजा कुंतीभोज की पुत्री थी| बाल्यावस्था से ही कुंती अपनी सुन्दरता, धर्म और सदाचार के लिए प्रसिद्ध थी| एक बार ऋषि दुर्वासा राजा कुंतीभोज के यहाँ रहने आये| वे एक वर्ष तक रहे| कुंती ने उनकी बहुत सेवा की| कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे एक मन्त्र सिखाया जिससे देवताओं का आह्वान हो सकता था|
हस्तिनापुर के राजभवन में कौरवो और पांडव राजकुमार एक साथ रहते थे| भीष्म और विदुर उनकी देखभाल किया करते थे| भीष्म की राजकुमारों को धनुर्विद्या का ज्ञान देने के लिए उपयुक्त शिक्षक की आवश्कता थी|
राजा त्रिशंकु के यज्ञ में आमंत्रण के अवसर पर वशिष्ठ पुत्र शक्ति और विश्वामित्र विवाद हो गया| विश्वामित्र ने शक्ति को शाप दे दिया और प्रेरणा से ‘रुधिर’ नामक राक्षस ने शक्ति ऋषि को खा लिया| महर्षि वशिष्ठ के दूसरे निन्यानबे पुत्रों को भी उसने खा डाला| महर्षि वशिष्ठ का एक पुत्र भी नही बचा|