अध्याय 58
1 [ज]
उत्तङ्काय वरं दत्त्वा गॊविन्दॊ दविजसत्तम
अत ऊर्ध्वं महाबाहुः किं चकार महायशाः
1 [य]
धर्माः पितामहेनॊक्ता राजधर्माश्रिताः शुभाः
धर्मम आश्रमिणां शरेष्ठं वक्तुम अर्हसि पार्थिव
1 [ल]
ततः शरुत्वा तु शर्यातिर वयः सथं चयवनं कृतम
संहृष्टः सेनया सार्धम उपायाद भार्गवाश्रमम
कश्मीर की एक घटना है| हम लोग एक दिन शिकारे में बैठकर ‘डल’ झील में घूम रहे थे| हमारे शिकारे वाला बड़ा मौजी आदमी था| डांड चलाते-चलाते कोई तान छेड़ देता था, वह खूब जोर से गाता था| वह हमें तैरती खेती दिखाने ले गया| वह कमल के बड़े-बड़े पत्तों और फूलों के बीच घूमता हुआ उस जगह आया, जहां एक सुंदर लड़की तीर-सी पतली नाव पर बैठी अपने खेत देख रही थी|
“Yudhishthira said, ‘I am conversant with both the Vedas and thescriptures that lead to the attainment of Brahma.
दैत्यराज विरोचन भक्तश्रेष्ठ प्रहलाद के पुत्र थे और प्रहलाद के पश्चात् ये ही दैत्यों के अधिपति बने थे| प्रजापति ब्रहमा के समीप दैत्यों के अग्रणी रूप में धर्म की शिक्षा ग्रहण करने विरोचन ही गए थे| धर्म में इनकी श्रद्धा थी| आचार्य शुक्र के ये बड़े निष्ठावान् भक्त थे और शुक्राचार्य भी इनसे बहुत स्नेह करते थे|
एक बार इंद्रप्रस्थ में पांडवोँ की सभा में श्रीकृष्णचंद्र कर्ण की दानशीलता की प्रशंसा करने लगे| अर्जुन को यह अच्छा नही लगा| उन्होंने कहा- ‘ऋषिकेश! धर्मराज की दानशीलता में कहाँ त्रुटि है जो उनकी उपस्थिति में आप कर्ण की प्रशंसा कर रहे है?’
“Yudhishthira said, ‘Thou hast said that as regards Reciters, they obtainthis very high end.[627] I beg to enquire whether this is their only endor there is any other to which they attain.’
Sanjaya said, “On the forenoon of that awful day, O king, the terriblebattle that mangled the bodies of (so many) kings commenced.