अध्याय 17
1 [ष]
अथ संचिन्तयानस्य देवराजस्य धीमतः
नहुषस्य वधॊपायं लॊकपालैः सहैव तैः
तपस्वी तत्र भगवान अगस्त्यः परत्यदृश्यत
1 [ष]
अथ संचिन्तयानस्य देवराजस्य धीमतः
नहुषस्य वधॊपायं लॊकपालैः सहैव तैः
तपस्वी तत्र भगवान अगस्त्यः परत्यदृश्यत
Vaisampayana said, “And that maiden of rigid vows. O mighty monarch, byserving with a pure heart, that Brahmana of rigid vows, succeeded ingratifying him.
एक विदेशी को अपराधी समझ जब राजा ने फांसी का हुक्म सुनाया तो उसने अपशब्द कहते हुए राजा के विनाश की कामना की। राजा ने अपने मंत्री से, जो कई भाषाओं का जानकार था, पूछा- यह क्या कह रहा है?
Vaishampayana said, “King Yudhishthira the just, the son of Pritha, hadnot stayed there for more than a moment when, O thou of Kurus race, allthe gods with Indra at their head came to that spot.
‘UGRASRAVA SAUTI, the son of Lomaharshana, versed in the Puranas, whilepresent in the forest of Naimisha, at the twelve years’ sacrifice ofSaunaka, surnamed Kulapati, stood before the Rishis in attendance.
हम मतवाले हैं चले साँई के देस – 2
जहाँ सभी को चैन मिलेगा कभी न लागे ठेस
यह मधुर, स्निग्ध, शीतल, शुक्रजनक एवं वीर्यवर्धक है| रक्त-पित्त एवं पित्त-विकार में अत्यंत लाभकारी है| यह हृदय को बल प्रदान करती है| सूखे मेवों में इसका स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण है|
द्रोण की मृत्यु के बाद कर्ण को कौरव सेना के संचालन का भार सौंपा गया| दुर्योधन, द्रोण की मृत्यु से चिंतित था| अश्वत्थामा क्रोधित होकर युद्ध कर रहा था और हवा में अग्नि बाण चला रहा था|
“Sanjaya said, ‘Wheeling round, like the planet Mercury in the curvatureof its orbit, Jishnu (Arjuna) once more slew large number of thesamsaptakas.