अध्याय 167
1 [स]
परादुर्भूते ततस तस्मिन्न अस्त्रे नारायणे तदा
परावात सपृषतॊ वायुर अनभ्रे सतनयित्नुमान
1 [स]
परादुर्भूते ततस तस्मिन्न अस्त्रे नारायणे तदा
परावात सपृषतॊ वायुर अनभ्रे सतनयित्नुमान
“Sanjaya said, ‘Placing Karna at their van, thy warriors, difficult ofdefeat in fight, returned and fought (with the foe) a battle thatresembled that between the gods and the Asuras.
1 [भृगु]
असृजद बराह्मणान एव पूर्वं बरह्मा परजापतिः
आत्मतेजॊ ऽभिनिर्वृत्तान भास्कराग्निसमप्रभान
एक राजा था| उसे हर घड़ी इस बात का डर लगा रहता था कि कहीं कोई दूसरा राजा उसके राज्य पर हमला करके उसे मार न डाले| वह सुरक्षा का उपाय सोचता, लेकिन उसकी समझ में कुछ भी न आता|
“Narada said, ‘Hearing of the fame of Karna’s might, the ruler of theMagadhas, king Jarasandha, challenged him to a single combat.
एक घने जंगल की गुफा में एक नन्हा मेमना अपने माँ-बाप के साथ रहता था| बकरी परिवार के खाने के लिए जंगल में बहुत कुछ था-झाड़िया,पत्तियां आदि| तीनों का जीवन आराम से कट जाता, बस शिकारी जानवरों का डर भर न होता|
“Bharadwaja said, ‘Tell me, O best of Brahmanas, how the puissant Brahmanresiding within Meru, created these diverse kinds of objects.’
“The Holy One said, ‘Listen, O son of Pritha, how, without doubt, thoumayst know me fully, fixing thy mind on me, practising devotion, andtaking refuge in me.