अध्याय 5
1 [ज]
शरुत्वा कर्णं हतं युद्धे पुत्रांश चैवापलायिनः
नरेन्द्रः किं चिद आश्वस्तॊ दविजश्रेष्ठ किम अब्रवीत
1 [ज]
शरुत्वा कर्णं हतं युद्धे पुत्रांश चैवापलायिनः
नरेन्द्रः किं चिद आश्वस्तॊ दविजश्रेष्ठ किम अब्रवीत
“‘Duryodhana said, “After the fears of those throngs of the pitris, thegods, and the Rishis had thus been dispelled by that high-souled Deity,Brahman then offered his adorations, unto Sankara, and said these wordsfor the benefit of the universe,
1 [भ]
वानप्रस्थाः खल्व ऋषिधर्मम अनुसरन्तः पुण्यानि तीर्थानि नदीप्रस्रवणानि सुविविक्तेष्व अरण्येषु मृगमहिष वराहसृमर गजाकीर्णेषु तपस्यन्तॊ ऽनुसंचरन्ति
तयक्तग्राम्य वस्त्राहारॊपभॊगा वन्यौषधि मूलफलपर्णपरिमित विचित्रनियताहाराः सथानासनिनॊ भूमिपासानसिकता शर्करा वालुका भस्मशायिनः काशकुश चर्म वल्कलसंवृताङ्गाः केशश्मश्रुनखरॊमधारिणॊ नियतकालॊपस्पर्शनास्कन्न हॊमबलिकालानुष्ठायिनः समित कुश कुसुमॊपहार हॊमार्जन लब्धविश्रामाः शीतॊस्न पवननिष्टप्त विभिन्नसर्वत्वचॊ विविधनियम यॊगचर्या विहित धर्मानुष्ठान हृतमांस शॊनितास तवग अस्थि भूता धृतिपराः सत्त्वयॊगाच छरीराण्य उद्वहन्ति
किसी जगह डाकुओं का एक दल था| उस दल का सरदार बड़ा खूंखार था| चारों ओर उसका इतना आतंक था कि लोग उसके नाम से थर-थर कांपते थे| एक दिन उसने अपने एक साथी को आदेश दिया कि वह अमुक दिन, अमुक जगह पर मिले| जिस दिन साथी को जाना था, उससे एक दिन पहले उसकी पत्नी बहुत बीमार हो गई, पर सरदार की आज्ञा तो पत्थर की लकीर थी| उसे कौन टाल सकता था| स्त्री को बुरी हालत में छोड़कर वह नियत दिन, नियत स्थान पर पहुंच गया|
OM! HAVING BOWED down to Narayana, and Nara, the foremost of male beings,and unto the goddess Saraswati, must the word Jaya be uttered.
हाज़ी लोक मक्के नूं जांदे,
मेरा रांझा माही मक्का,
नी मैं कमली आं|
“Yudhishthira said, ‘O thou that art conversant with the conduct of men,tell me by what conduct a person may succeed in this world, freed fromgrief. How also should a person act in this world so that he may attainto an excellent end?’
कई वर्ष पहले, एक घने जंगल में चार चोर रहते थे| चुराया हुआ धन वे एक साधारण से बर्तन में रखते थे लेकिन उसकी हिफाजत जान से भी ज्यादा करते थे| कुछ अरसे बाद उनका मन चोरी-चकारी से उब गया|