अध्याय 23
1 [सू]
सुपर्णेनॊह्यमानास ते जग्मुस तं देशम आशु वै
सागराम्बुपरिक्षिप्तं पक्षिसंघ निनादितम
“Yudhishthira said, ‘When the high righteousness suffers decay and istransgressed by all, when unrighteousness becomes righteousness, andrighteousness assumes the form of its reverse,
यह भक्त जी भी दक्षिण देश की तरफ से हुए हैं तथा भक्त नामदेव जी के गुरु-भाई वैश्य जाति से थे और ज्ञान देव जी (ज्ञानेश्वर) के शिष्य थे| उन से दीक्षा प्राप्त की थी| दक्षिण में आप की ख्याति भी भक्त नामदेव जी की तरह बहुत हुई तथा जीव कल्याण का उपदेश करते रहे| आपको बड़े जिज्ञासु भक्तों में माना गया| आपके बारे में भाई गुरदास जी इस प्रकार उच्चारण करते हैं –
मिस्र के प्रसिद्ध संत जुन्नून के पास एक शिष्य दीक्षा लेने आया, किंतु चार वर्ष वहां रहकर भी वह जुन्नून से यह नहीं कह सका कि मैं धर्म की दीक्षा लेने आया हूं। एक दिन संत ने उससे पूछा- क्या चाहते हो? तब युवक यूसुफ हुसैन ने कहा- मैं आपका शिष्य बनकर धर्म की दीक्षा लेना चाहता हूं।
“Sanjaya said, ‘Beholding Drona filled with great anxiety and almostdeprived of his senses by grief, Dhrishtadyumna, the son of the Panchalaking, rushed at him.
1 [स]
एतस्मिन्न अन्तरे कृष्णः पार्थं वचनम अब्रवीत
दर्शयन्न इव कौन्तेयं धर्मराजं युधिष्ठिरम
“Vaisampayana said, ‘Marching out of the city, those heroic smiters theMatsyas, arrayed in order of battle, overtook the Trigartas when the sunhad passed the meridian.
Vaisampayana said,–“in consequence of the protection afforded byYudhisthira the just, and of the truth which he ever cherished in hisbehaviour, as also of the check under which he kept all foes, thesubjects of that virtuous monarch were all engaged in their respectiveavocations.
माँ! पहले विवाह मैं करूँगा| एकदन्त के सहसा ऐसे वचन सुनकर पहले तो शिवा हँसीं और अपने प्रिय पुत्र विनायक से स्नेहयुक्त स्वर में बोलीं-‘हाँ, हाँ! विवाह तो तेरा भी होगा ही, पर स्कन्द तुझसे बड़ा है| पहले उसका विवाह होगा|’