अध्याय 44
1 [धृ]
निवृत्ते भीमसेने च पाण्डवे च युधिष्ठिरे
वध्यमाने बले चापि मामके पाण्डुसृञ्जयैः
“Vaisampayana said, ‘O mighty king, entering into king Virata’s service,and dwelling in disguise in his excellent city, the high-souled Pandavasof immeasurable prowess, completed the promised period of non-discovery.
Vaisampayana said,–“I shall now recite to you the deeds and triumphs ofNakula, and how that exalted one conquered the direction that had oncebeen subjugated by Vasudeva.
सम्पूर्ण कक्ष एक करुण-चीत्कार से गूँज उठा| अभी-अभी तो महाभारत युद्ध समाप्त हुआ है और विजय की इस वेला में यह करुण-क्रन्दन? सभी पाण्डवपक्ष के वीर पांचली के कक्ष से आती चीत्कार की ओर दौड़े पड़े|
जमाने ने कहा टूटी हुई तश्वीर बनती है,
तेरे दरबार में बिगड़ी हुई तक्दीर बनती है…
“Sanjaya said, ‘Once more Keshava of immeasurable soul said these wordsunto Arjuna, who, O Bharata, was advancing (to battle), firmly resolvedupon slaying Karna, ‘Today is the seventeenth day, O Bharata, of thisterrible massacre of men and elephants and steeds.
किसी शहर में एक सेठ रहता था| किसी कारणवश उस बेचारे को अपने कारोबार में घाटा पड़ गया| गरीब होने के कारण उसे बहुत दुःख था| इस दुःख से तंग आकर उसने सोचा कि इस जीवन का उसे क्या लाभ? इससे तो मर जाना अच्छा है|
“Yudhishthira said, ‘Which amongst these three persons, O grandsire,should be regarded as the best for making gifts unto, viz., one who is athorough stranger, or one who is living with and who has been known tothe giver for a long time, or one who presents himself before the giver,coming from a long distance?’
1 [य]
परियः सर्वस्य लॊकस्य सर्वसत्त्वाभिनन्दिता
गुणैः सर्वैर उपेतश च कॊ नव अस्ति भुवि मानवः