अध्याय 34
1 अर्जुन उवाच
एवं सततयुक्ता ये भक्तास तवां पर्युपासते
ये चाप्य अक्षरम अव्यक्तं तेषां के यॊगवित्तमाः
1 अर्जुन उवाच
एवं सततयुक्ता ये भक्तास तवां पर्युपासते
ये चाप्य अक्षरम अव्यक्तं तेषां के यॊगवित्तमाः
“Arjuna said, ‘How, O Janardana, for our good, and by what means, werethose lords of the earth, viz., Jarasandha and the others, slain?’
1 [स]
तेषाम अनीकानि बृहद धवजानि; रणे समृद्धानि समागतानि
गर्जन्ति भेरी निनदॊन्मुखानि; मेघैर यथा मेघगणास तपान्ते
“Bhima said, ‘I will, O timid one, do even as thou sayest. I willpresently slay Kichaka with all his friends.
हस्तिनापुर की रानी व उसकी सखियाँ तालाब में नित्य स्नान किया करती थी| एक दासी जो प्रतिदिन उनके कपड़ों और आभूषणों की निगरानी करती थी, इस उबाऊ काम से काफ़ी परेशान थी|
भगवान् शंकर के अवतारों मे भैरव जी का अपना ही एक विशिष्ट स्थान है| भ – से विशव का भरण, र – से रमेश, व् – व् से वमन , अर्थात सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और सहांर करने वाले शिव ही भैरव हैं| भैरव यंत्र की बहुत विशेषता मानी गई है, भैरव साधना अकाल मौत से बचाती है, तथा भूत प्रेत, काले जादू से भी हमारी रक्षा करता है|
संभवतया सीताफल उतना ही विख्यात है, जितना कि सीता का नाम| वानरों का यह प्रिय फल है, इसका साग पूड़ियों के साथ अत्यंत स्वादिष्ट लगता है| आधुनिक साँस बनाने में भी इसका पयोग किया जाता है| यह तृप्तिजनक है, बलवर्धक है| रस-मधुर है| हृदय को हितकारी है| वात-कफ का कारक है, किन्तु पित्त का नाशक है|
एक राजा था| उसके पास एक बहुरुपिया आया| वह तरह-तरह के स्वाँग धारण किया करता था| उसमें देवी की एक ऐसी शक्ति थी कि वह जो भी स्वाँग धारण करता, उसको पूरा वैसा-का-वैसा निभाता था| उसमें वह कहीं चुकता नहीं था|