Chapter 31
“Yudhishthira said, ‘Thy speech, O Yajnaseni, is delightful, smooth andfull of excellent phrases. We have listened to it (carefully). Thouspeakest, however, the language of atheism.
“Yudhishthira said, ‘Thy speech, O Yajnaseni, is delightful, smooth andfull of excellent phrases. We have listened to it (carefully). Thouspeakest, however, the language of atheism.
पाँचों पाण्डव – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव – पितामह भीष्म तथा विदुर की छत्रछाया में बड़े होने लगे। उन पाँचों में भीम सर्वाधिक शक्तिशाली थे। वे दस-बीस बालकों को सहज में ही गिरा देते थे। दुर्योधन वैसे तो पाँचों पाण्डवों ईर्ष्या करता था किन्तु भीम के इस बल को देख कर उससे बहुत अधिक जलता था। वह भीमसेन को किसी प्रकार मार डालने का उपाय सोचने लगा। इसके लिये उसने एक दिन युधिष्ठिर के समक्ष गंगा तट पर स्नान, भोजन तथा क्रीड़ा करने का प्रस्ताव रखा जिसे युधिष्ठिर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
1 [व]
वनं परविष्टेष्व अथ पाण्डवेषु; परज्ञा चक्षुस तप्यमानॊ ऽमबिकेयः
धर्मात्मानं विदुरम अगाध बुद्धिं; सुखासीनॊ वाक्यम उवाच राजा
Vaishampayana said, “Then Valadeva, O king, proceeded to Vinasana wherethe Sarasvati hath become invisible in consequence of her contempt forSudras and Abhiras.
“Yudhishthira said, ‘If one does not succeed in winning over one’skinsmen and relatives (by this course), they that are intended forbecoming friends become foes. How should one, then, conduct one’s self sothat the hearts of both friends and foes may be won?’
यह घटना प्राचीन समय की है| देवताओं और दानवों का युद्ध चलता रहता था| एक बार की लड़ाई में देवों ने दानवों को हरा दिया| इस पर देवता घमंड में भर गए| उन्होंने सोचा कि यह विजय हमारी ही है|
“Yudhishthira said, ‘If Brahmanas that are in the observance of a vow(viz., fast) eat, at the invitation of a Brahmana, the Havi (offered at aSraddha), can they be charged with the transgression or a violation oftheir vow, or should they refuse the invitation of a Brahmana when suchinvitation is received by them? Tell me this, O grandsire!’
बहुत दिनों की बात है| हाथियों का एक बड़ा झुण्ड एक जंगल में रहता था| एक बड़े दांतों वाला विशालकाय हाथी उस दल का राजा था| यह गजराज अपने दल की देखभाल बड़े प्यार और ध्यान से करता था|
1 [पराषर]
वृत्तिः सकाशाद वर्णेभ्यस तरिभ्यॊ हीनस्य शॊभना
परीत्यॊपनीता निर्दिष्टा धर्मिष्ठान कुरुते सदा