रावण के जन्म की कथा – 1
जब श्रीराम अयोध्या में राज्य करने लगे तब एक दिन समस्त ऋषि-मुनि श्रीरघुनाथजी का अभिनन्दन करने के लिये अयोध्यापुरी में आये। श्रीरामचन्द्रजी ने उन सबका यथोचित सत्कार किया।
जब श्रीराम अयोध्या में राज्य करने लगे तब एक दिन समस्त ऋषि-मुनि श्रीरघुनाथजी का अभिनन्दन करने के लिये अयोध्यापुरी में आये। श्रीरामचन्द्रजी ने उन सबका यथोचित सत्कार किया।
1 [ज]
एवं दयूतजिताः पार्थाः कॊपिताश च दुरात्मभिः
धार्तराष्ट्रैः सहामात्यैर निकृत्या दविजसत्तम
Janamejaya said, “Why did the adorable Arshtishena undergo the austerestof penances? How also did Sindhudwipa acquire the status of a Brahmana?
“Yudhishthira said, ‘It has been said that in seasons of distress aBrahmana may support himself by the practice of Kshatriya duties. Can he,however, at any time, support himself by the practice of the duties laiddown for the Vaisyas?’
“Yudhishthira said, ‘What did that foremost of ascetics, viz., Jamadagniendued with great energy, do when thus besought by the maker of day?'”
एक बार एक सैनिक घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जंगल जा रहा था| रास्ते में डाकुओं की एक बस्ती पड़ी| एक घर के दरवाजे के बाहर लटके पिंजरे में बैठा एक तोता चिल्ला उठा- “भागो, पकड़ लो, इसे मार डालो, इसका घोड़ा और माल-असबाब सब छीन लो|
1 [बर]
शुभानाम अशुभानां च नेह नाशॊ ऽसति कर्मणाम
पराप्य पराप्य तु पच्यन्ते कषेत्रं कषेत्रं तथा तथा