अध्याय 51
1 बृहदश्व उवाच
दमयन्ती तु तच छरुत्वा वचॊ हंसस्य भारत
तदा परभृति न सवस्था नलं परति बभूव सा
किसी वन में तमाल के वृक्ष पर घोंसला बनाकर चिड़ा और चिड़िया रहा करते थे| समय पाकर चिड़िया ने अण्डे दिए और जब एक दिन चिड़िया अण्डे से रही थी तथा चिड़ा उसके समीप ही बैठा था तो एक मदोन्मत हाथी उधर से आ निकला| धूप से व्याकुल होने के कारण वह वृक्ष की छाया में आ गया ओर उसने अपनी सूंड से उस शाखा के ही तोड़-मरोड़ दिया जिस पर उनका घोंसला था| इससे चिड़ा ओर चिड़िया तो किसी तरह उड़कर बच गए किन्तु घोंसला नीचे गिर जाने से उसमें रखे अण्डे चूर-चूर हो गए|
“Chyavana said, ‘I should certainly, O chief of men, tell you everythingabout the circumstance for which, O monarch, I came hither forexterminating thy race.
“Yudhishthira said, ‘I wish, O sire, to hear the settled conclusions onthe subject of Virtue, Wealth, and Pleasure. Depending upon which ofthese does the course of life proceed? What are the respective roots ofVirtue, Wealth, and Pleasure? What are again the results of those three?They are sometimes see n to mingle with one another, and sometimes toexist separately and independently of one another.’
1 [वयास]
सृजते तु गुणान सत्त्वं कषेत्रज्ञस तव अनुतिष्ठति
गुणान विक्रियतः सर्वान उदासीनवद ईश्वरः
एक बार नारदजी एक पर्वत से गुजर रहे थे। अचानक उन्होंने देखा कि एक विशाल वटवृक्ष के नीचे एक तपस्वी तप कर रहा है। उनके दिव्य प्रभाव से वह जाग गया और उसने उन्हें प्रणाम करके पूछा कि उसे प्रभु के दर्शन कब होंगे।
1 अर्जुन उवाच
जयायसी चेत कर्मणस ते मता बुद्धिर जनार्दन
तत किं कर्मणि घॊरे मां नियॊजयसि केशव
“Sanjaya said, ‘Beholding his own army routed while being slaughtered bythose illustrious heroes, thy son, well-acquainted with words, O monarch,quickly repairing unto Karna and Drona, that foremost of all victors inbattle, wrathfully said these words,