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एक बार की बात है कि वर्षाकाल आरम्भ होने पर अपना चातुर्मास्य करने के उद्देश्यय से मैंने किसी ग्राम के एक ब्राह्मण से स्थान देने का आग्रह किया था| उसने मेरी प्रार्थना को स्वीकार किया और मैं उस स्थान पर रहता हुआ अपनी व्रतोपसाना करता रहा|