अध्याय 64
1 [कर्ण]
या नः शरुता मनुष्येषु सत्रियॊ रूपेण संमताः
तासाम एतादृशं कर्म न कस्यां चन शुश्रुमः
1 [कर्ण]
या नः शरुता मनुष्येषु सत्रियॊ रूपेण संमताः
तासाम एतादृशं कर्म न कस्यां चन शुश्रुमः
“Sanjaya said, ‘During the progress, O monarch, of that battle, makingthe hair stand on end, and when all the combatants were filled withanxiety and greatly afflicted, the son of Radha. O bull of Bharata’srace, proceeded against Bhima for battle, like an infuriated elephant inthe forest proceeding against another infuriated elephant.’
यह व्रत प्रायः कार्तिक बदी अष्टमी को उसी वार को किया जाता है| जिस वार की दीपावली होती है| इस दिन स्त्रियों की आरोग्यता और दीर्घायु प्राप्ति के लिए अहोई माता का चित्र दिवार पर माँड कर पूजन किया जाता है|
“Sanjaya said, ‘Then king Yudhishthira, and Bhimasena, the son of Pandu,O monarch, encompassed Drona’s son on all sides.
“Vaisampayana said, ‘Like Duryodhana, king Yudhishthira also, the son ofKunti and Dharma, ordered out, O Bharata, his heroic warriors headed byDhrishtadyumna.
“Vaisampayana said,–“Janardana deserving the worship of all, havinglived happily at Khandavaprastha for some time, and having been treatedall the while with respectful love and affection by the sons of Pritha,became desirous one day of leaving Khandavaprastha to behold his father.
एक बार की बात है एक जिज्ञासु साधक सच्चे आनंद की तलाश में एक महात्मा के पास गया| महात्मा जी से उसने बहुत आग्रह से प्रार्थना की कि वह सच्चे आनंद पर प्रकाश डालें| "सच्चा आनन्द" सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio Your
प्राचीन समय में राजा सुरथ नाम के राजा थे, राजा प्रजा की रक्षा में उदासीन रहने लगे थे, परिणाम स्वरूप पडौसी राजा ने उस पर चढाई कर दी, सुरथ की सेना भी शत्रु से मिल गयी थी, परिणामस्वरूप राजा सुरथ की हार हुयी, और वह जान बचाकर जंगल की तरफ़ भागा।