अध्याय 182
1 [भरद्वाज]
बराह्मणः केन भवति कषत्रियॊ वा दविजॊत्तम
वैश्यः शूद्रश च विप्रर्षे तद बरूहि वदतां वर
1 [भरद्वाज]
बराह्मणः केन भवति कषत्रियॊ वा दविजॊत्तम
वैश्यः शूद्रश च विप्रर्षे तद बरूहि वदतां वर
किसी नगर में गंगा के किनारे बैठकर एक भिखारी भीख मांगा करता था| उसके हाथ में एक कटोरा रहता था, जिसे जो देना होता था, वह कटोरे में डाल देता था|
“Narada said, ‘Having thus obtained weapons from him of Bhrigu’s race,Karna began to pass his days in great joy, in the company of Duryodhana,O bull of Bharata’s race!
एक रोज सुबह-सुबह राजा वीरभद्र आखेट के लिए निकला| महल लौटने को हुआ तो बहुत ही थका, भूखा और प्यासा हो चूका था| तभी, सड़क के किनारे उसने तरबूजों का खेत देखा| एक प्यासे को इससे बढ़कर और क्या चाहिए?
“Yudhishthira said, ‘Whence has this universe consisting of mobile andimmobile creatures been created? Whom does it go to when destruction setsin?
“The Holy One said,–‘Regardless of fruit of action, he that performs theactions which should be performed, is a renouncer and devotee, and notone who discards the (sacrificial) fire, nor one that abstains fromaction.
“Virata said, ‘Why, O best among the Pandavas, dost thou not wish toaccept as wife this my daughter that I bestow upon thee?’
जीवन दर्शन एक वर्ष भीषण बारिश हुई। मध्यप्रदेश की एक नदी में बाढ़ आ गई। वहां के सारे गांव और बस्ती खाली हो गए, लेकिन एक स्थान ऐसा था जहां कुछ लोग बाढ़ से तो बच गए, किंतु पानी से घिर गए। उनके चारों ओर पानी ही पानी था। खाने-पीने का कोई सामान नहीं और सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी।
“Yudhishthira said,–‘O king, thou art our master. Command us as to whatwe shall do. O Bharata, we desire to remain always in obedience to thee.