Home2011September (Page 46)

1 [भ] वानप्रस्थाः खल्व ऋषिधर्मम अनुसरन्तः पुण्यानि तीर्थानि नदीप्रस्रवणानि सुविविक्तेष्व अरण्येषु मृगमहिष वराहसृमर गजाकीर्णेषु तपस्यन्तॊ ऽनुसंचरन्ति
तयक्तग्राम्य वस्त्राहारॊपभॊगा वन्यौषधि मूलफलपर्णपरिमित विचित्रनियताहाराः सथानासनिनॊ भूमिपासानसिकता शर्करा वालुका भस्मशायिनः काशकुश चर्म वल्कलसंवृताङ्गाः केशश्मश्रुनखरॊमधारिणॊ नियतकालॊपस्पर्शनास्कन्न हॊमबलिकालानुष्ठायिनः समित कुश कुसुमॊपहार हॊमार्जन लब्धविश्रामाः शीतॊस्न पवननिष्टप्त विभिन्नसर्वत्वचॊ विविधनियम यॊगचर्या विहित धर्मानुष्ठान हृतमांस शॊनितास तवग अस्थि भूता धृतिपराः सत्त्वयॊगाच छरीराण्य उद्वहन्ति

किसी जगह डाकुओं का एक दल था| उस दल का सरदार बड़ा खूंखार था| चारों ओर उसका इतना आतंक था कि लोग उसके नाम से थर-थर कांपते थे| एक दिन उसने अपने एक साथी को आदेश दिया कि वह अमुक दिन, अमुक जगह पर मिले| जिस दिन साथी को जाना था, उससे एक दिन पहले उसकी पत्नी बहुत बीमार हो गई, पर सरदार की आज्ञा तो पत्थर की लकीर थी| उसे कौन टाल सकता था| स्त्री को बुरी हालत में छोड़कर वह नियत दिन, नियत स्थान पर पहुंच गया|