अध्याय 196
1 [मनु]
यद इन्द्रियैस तूपकृतान पुरस्तात; पराप्तान गुणान संस्मरते चिराय
तेष्व इन्द्रियेषूपहतेषु पश्चात; स बुद्धिरूपः परमः सवभावः
1 [मनु]
यद इन्द्रियैस तूपकृतान पुरस्तात; पराप्तान गुणान संस्मरते चिराय
तेष्व इन्द्रियेषूपहतेषु पश्चात; स बुद्धिरूपः परमः सवभावः
बहुत समय पहले की बात है- एक राजा ने अपनी सेना सहित किसी नगर के बाहर पड़ाव डाला| वहाँ पेड़ पर बैठा एक बंदर गौर से उनकी तमाम गतिविधियाँ देख रहा था|
“Yudhishthira said, ‘Tell me, O grandsire, in what kind of man or woman,O chief of the Bharatas, does the goddess of prosperity always reside?’
“Yudhishthira said, ‘O grandsire, O thou that art possessed of greatwisdom, I shall ask thee a question.
Sanjaya said,–“When the night had passed away, loud became the noisemade by the kings, all exclaiming, Array! Array!
सुदर्शनचक्र, जो भगवान् विष्णु का अमोघ अस्त्र है और जिसने देवताओं की रक्षा तथा राक्षसों के संहार में अतुलनीय भूमिका का निर्वाह किया है और करता है, क्या है और कैसे भगवान् विष्णु को प्राप्त हुआ-इसकी कथा इस प्रकार है-
राजा वीरसेन को संत-सत्संग अतिप्रिय था। उनके दरबार में प्राय: दूर-दूर से साधु-संत आते थे और वीरसेन उन्हें यथोचित सम्मान देकर उनसे ज्ञान की बातें ग्रहण करते थे। एक दिन उनके राज्य की सीमा पर एक विख्यात संत ने डेरा डाला। राजा वीरसेन को पता चला तो वे स्वयं उसका सत्कार करने पहुंचे।
Vaisampayana said,–“The sons of Pritha with Yudhishthira at their head,having entered that assembly house, approached all the kings that werepresent there.