अध्याय 63
1 [दुर]
वासुदेवॊ महद भूतं सर्वलॊकेषु कथ्यते
तस्यागमं परतिष्ठां च जञातुम इच्छे पितामह
“Dhritarashtra said,–‘Thou hast, O Sanjaya, duly described Jamvukhandato me. Tell me now its dimensions and extent truly.
“Vaisampayana said, ‘Having disorganised the hostile host by force andhaving recovered the kine, that foremost of bowmen, desirous of fightingagain, proceeded towards Duryodhana.
एक साधु व डाकू यमलोक पहुंचे। डाकू ने यमराज से दंड मांगा और साधु ने स्वर्ग की सुख-सुविधाएं। यमराज ने डाकू को साधु की सेवा करने का दंड दिया। साधु तैयार नहीं हुआ। यम ने साधु से कहा- तुम्हारा तप अभी अधूरा है।
इस सृष्टि से पूर्वसृष्टि की बात है| जाम्बवती श्रीसोम की पुत्री थी| श्रीसोम श्री विष्णु की सेवा में लगे रहते थे| उनकी पुत्री जाम्बवती भी पिता का अनुशरण करती थी|
“Dhritrashtra said,–Thou art my eldest son and born also of my eldestwife. Therefore, O son, be not jealous of the Pandavas. He that isjealous is always unhappy and suffereth the pangs of death.
यह गोंद का ही प्रतिरूप है| प्रत्येक मौसम में इसका प्रयोग किया जा सकता है| किन्तु ग्रीष्मकाल में विशेष लाभप्रद है| प्यास आदि को दूर करने में यह अद्वितीय है| स्त्री-पुरुषों के गुप्त रोगों में भी विशेष लाभकारी है|