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एक साधु व डाकू यमलोक पहुंचे। डाकू ने यमराज से दंड मांगा और साधु ने स्वर्ग की सुख-सुविधाएं। यमराज ने डाकू को साधु की सेवा करने का दंड दिया। साधु तैयार नहीं हुआ। यम ने साधु से कहा- तुम्हारा तप अभी अधूरा है।

इस सृष्टि से पूर्वसृष्टि की बात है| जाम्बवती श्रीसोम की पुत्री थी| श्रीसोम श्री विष्णु की सेवा में लगे रहते थे| उनकी पुत्री जाम्बवती भी पिता का अनुशरण करती थी|

यह गोंद का ही प्रतिरूप है| प्रत्येक मौसम में इसका प्रयोग किया जा सकता है| किन्तु ग्रीष्मकाल में विशेष लाभप्रद है| प्यास आदि को दूर करने में यह अद्वितीय है| स्त्री-पुरुषों के गुप्त रोगों में भी विशेष लाभकारी है|