अध्याय 134
1 [अस्त]
अत्रॊग्रसेनसमितेषु राजन; समागतेष्व अप्रतिमेषु राजसु
न वै विवित्सान्तरम अस्ति वादिनां; महाजले हंसनिनादिनाम इव
1 [अस्त]
अत्रॊग्रसेनसमितेषु राजन; समागतेष्व अप्रतिमेषु राजसु
न वै विवित्सान्तरम अस्ति वादिनां; महाजले हंसनिनादिनाम इव
किसी नगर में एक जुलाहा रहता था| वह बहुत बढ़िया कम्बल तैयार करता था| कत्तिनों से अच्छी ऊन खरीदता और भक्ति के गीत गाते हुए आनंद से कम्बल बुनता| वह सच्चा था, इसलिए उसका धंधा भी सच्चा था, रत्तीभर भी कहीं खोट-कसर नहीं थी|
Vaisampayana said, “The foremost of kings, viz., Yudhishthira the son ofDharma, still remaining speechless, Pandu’s son Arjuna addressed Krishnaand spoke as follows:
“Markandeya said, ‘Having slain Ravana, that wretched king of theRakshasas and foe of the celestials, Rama with his friends and Sumitra’sson rejoiced exceedingly.
सरस्वती माँ शत् प्रणाम, घट में भर दे ऐसा ज्ञान।
करें देश सेवा का काम, पढ़ लिखकर हम पाएँ मान।
“Yudhishthira asked, ‘Who were the first Prajapatis, O bull of Bharata’srace? What highly-blessed Rishis are there in existence and on whichpoints of the compass do each of them dwell?’
Sanjaya said,–“When the night having passed away, the dawn came,Santanu’s son Bhishma, that chastiser of foes, gave the order for the(Kuru) army to prepare for battle.