अध्याय 159
1 [भ]
कृतार्थॊ यक्ष्यमाणश च सर्ववेदान्तगश च यः
आचार्य पितृभार्यार्थं सवाध्यायार्थम अथापि वा
1 [भ]
कृतार्थॊ यक्ष्यमाणश च सर्ववेदान्तगश च यः
आचार्य पितृभार्यार्थं सवाध्यायार्थम अथापि वा
एक शिकारी था| वह बड़ा ही क्रूर और निर्दयी था| वह पक्षियों का हनन करके उन्हें खा जाता था| एक दिन की बात है कि उसके जाल में एक कबूतरी फंस गई| वह उसे लेकर चला तो बादल घिर आए|
Vaisampayana said, “Vyasa then dispelled the grief of the eldest son ofPandu., who, burning with sorrow on account of the slaughter of hiskinsmen, had resolved to make an end of himself.”
“Markandeya said, ‘It was thus, O mighty-armed one, that Rama ofimmeasurable energy had suffered of old such excessive calamity inconsequence of his exile in the woods!
मेरे बाबा सुन लो, मन की पुकार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।
“Yudhishthira said, ‘O grandsire, O thou of great wisdom, I desire tohear in detail, O chief of the Bharatas, of that lotus-eyed andindestructible one, who is the
Sanjaya said, “When the forenoon of that day had passed away, O Bharata,and when the destruction of cars, elephants, steeds, foot-soldiers andhorse-soldiers, proceeded on, the prince of Panchala engaged himself inbattle with these three mighty car-warriors, viz.,
श्रुतायुध के पास भगवान शंकर के वरदान से प्राप्त एक अमोघ गदा थी। इसके पीछे एक कथा यह थी कि श्रुतायुध के तप से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उपहार स्वरूप यह वरदान उसे इस शर्त पर दिया था कि वह कभी भी उस गदा का अनीतिपूर्वक उपयोग न करे। यदि वह नीति के विरुद्ध आचरण करेगा तो लौटकर वह उसका ही विनाश कर देगी।