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कैकेयीजी महाराज केकयनरेशकी पुत्री तथा महाराज दशरथकी तीसरी पटरानी थीं| ये अनुपम सुन्दरी, बुद्धिमति, साध्वी और श्रेष्ठ वीराग्ङना थीं| महाराज दशरथ इनसे सर्वाधिक प्रेम करते थे|

हस्तिनापुर से लौटते समय कृष्ण की भेंट कर्ण से हुई| उन्होंने कर्ण से कहा, “कर्ण, तुम्हे संभवतः यह विदित नहीं है कि तुम कुंती के पुत्र और पांडवों के भाई हो| अतः तुम्हें यह भी सोचना होगा कि अपने भाइयों से युद्ध करना कहां उचित है| कहो कर्ण! यह जानने के बाद क्या युद्ध अनावश्यक नहीं हो जाता?”

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।

1 [य] मान्धाता राजशार्दूलस तरिषु लॊकेषु विश्रुतः
कथं जातॊ महाब्रह्मन यौवनाश्वॊ नृपॊत्तमः
कथं चैतां परां काष्ठां पराप्तवान अमितद्युतिः