Home2011August (Page 25)

दैत्यराज विरोचन भक्तश्रेष्ठ प्रहलाद के पुत्र थे और प्रहलाद के पश्चात् ये ही दैत्यों के अधिपति बने थे| प्रजापति ब्रहमा के समीप दैत्यों के अग्रणी रूप में धर्म की शिक्षा ग्रहण करने विरोचन ही गए थे| धर्म में इनकी श्रद्धा थी| आचार्य शुक्र के ये बड़े निष्ठावान् भक्त थे और शुक्राचार्य भी इनसे बहुत स्नेह करते थे|

एक बार इंद्रप्रस्थ में पांडवोँ की सभा में श्रीकृष्णचंद्र कर्ण की दानशीलता की प्रशंसा करने लगे| अर्जुन को यह अच्छा नही लगा| उन्होंने कहा- ‘ऋषिकेश! धर्मराज की दानशीलता में कहाँ त्रुटि है जो उनकी उपस्थिति में आप कर्ण की प्रशंसा कर रहे है?’

एक व्यक्ति नित्य ही समुद्र तट पर जाता और वहां घंटों बैठा रहता। आती-जाती लहरों को निरंतर देखता रहता। बीच-बीच में वह कुछ उठाकर समुद्र में फेंकता, फिर आकर अपने स्थान पर बैठ जाता। तट पर आने वाले लोग उसे विक्षिप्त समझते और प्राय: उसका उपहास किया करते थे।

इसे घिया के नाम से भी जाना जाता है| यह लम्बी और गोलाकार भी होती है| इसका रंग हल्का हरा होता है| यह स्वाद में मीठी, हल्की और सुपाच्य होती है| यह सब्जी से लेकर मिष्ठान्न तक में प्रयुक्त होती है|

“Sauti said, ‘O Brahmana, Chyavana, the son of Bhrigu, begot a son in thewomb of his wife Sukanya. And that son was the illustrious Pramati ofresplendent energy. And Pramati begot in the womb of Ghritachi a soncalled Ruru. And Ruru begot on his wife Pramadvara a son called Sunaka.And I shall relate to you in detail, O Brahmana, the entire history ofRuru of abundant energy. O listen to it then in full!