अध्याय 161
1 [स]
तरिभागमात्रशेषायां रात्र्यां युद्धम अवर्तत
कुरूणां पाण्डवानां च संहृष्टानां विशां पते
1 [स]
तरिभागमात्रशेषायां रात्र्यां युद्धम अवर्तत
कुरूणां पाण्डवानां च संहृष्टानां विशां पते
“Sanjaya said, ‘Meanwhile towards the northern part of the Pandava army,a loud uproar arose of cars and elephants and steeds and foot-soldiers asthose were being massacred by Dandadhara.
किसी नगर में राबिया नाम की बड़ी ऊंची संत थीं| उनका जीवन अत्यंत सादा, सरल और सात्विक था| उनका हृदय हर घड़ी प्रेम से छलछलाता रहता था और उनका द्वार सबके लिए हमेशा खुला रहता था|
“Yudhishthira said, ‘Discontent, heedless attachment to earthly goods,the absence of tranquillity, might, folly, vanity, and anxiety,–affectedby these sins, O Bhima, thou covetest sovereignty.
सिघाड़े को ‘जलफल’ और ‘त्रिकोणफल’ भी कहा जाता है| यह तालाब के जल के गर्भ से उत्पन्न होता है| यह मधुर, मृदु एवं सरस होता है| रोग के कीटाणुओं को यह जड़ से नष्ट कर देता है| यह पौष्टिक, शीतल, स्वादिष्ट, रुचिकर, वीर्यवर्धक और त्रिदोषनाशक है तथा स्त्रियों के लिए तो बहुत अधिक लाभकारी है|
सप्तसिंधव के प्रतापशाली सम्राटों में इक्ष्वाकुवंशीय महाराज त्रैवृष्ण त्र्यरुण अत्यंत प्रतापी और उच्चकोटि के विद्वान राजा हुए है| सत्यनिष्ठा, प्रजावत्सलता, उदारता आदि सभी प्रशंसनीय सद्गुण मानो उन-जैसे सत्पात्र में बसने के लिए लालायित रहते थे| समन्वय के उस सेतु को पाकर संसार में प्रायः दिखने वाला लक्ष्मी-सरस्वती का विरोध भी मानो सदा के लिए मिट गया|