भक्त और भगवान
तीनों लोकों में राधा की स्तुति से देवर्षि नारद खीझ गए थे। उनकी शिकायत थी कि वह तो कृष्ण से अथाह प्रेम करते हैं फिर उनका नाम कोई क्यों नहीं लेता, हर भक्त ‘राधे-राधे’ क्यों करता रहता है। वह अपनी यह व्यथा लेकर श्रीकृष्ण के पास पहुंचे।
तीनों लोकों में राधा की स्तुति से देवर्षि नारद खीझ गए थे। उनकी शिकायत थी कि वह तो कृष्ण से अथाह प्रेम करते हैं फिर उनका नाम कोई क्यों नहीं लेता, हर भक्त ‘राधे-राधे’ क्यों करता रहता है। वह अपनी यह व्यथा लेकर श्रीकृष्ण के पास पहुंचे।
Vaisampayana continued, “Then, O bull among the Bharatas, that mightybowman, Karna, surrounded by a large army, besieged the beautiful city ofDrupada.
यह उन दिनों की बात है, जब चंपारन में किसानों का सत्याग्रह चल रहा था| गांधीजी की उस सेना में सभी प्रकार के सैनिक थे| जिसमें आत्मिक बल था, वे उस लड़ाई में शामिल हो सकते थे| सत्याग्रहियों में कुष्ठ रोग से पीड़ित एक खेतिहर मजदूर भी था उसके शरीर में घाव थे| वह उन पर कपड़ा लपेटकर चलता था| एक दिन शाम को सत्याग्रही अपनी छावनी को लौट रहे थे, पर उस बेचारे कुष्ठी से चला नहीं जा रहा था| उसके पैरों पर बंधे कपड़े कहीं गिर गए थे | घावों से खून बह रहा था| सब लोग आश्रम में पहुंच गए| बस एक वही व्यक्ति रह गया|
“Suka said, ‘While living in the due observance of the duties of theforemost of life, how should one, who seeks to attain to That which isthe highest object of knowledge, set one’s soul on Yoga according to thebest of one’s power?’
1 [य]
विद्या तपश च दानं च किम एतेषां विशिष्यते
पृच्छामि तवा सतां शरेष्ठ तन मे बरूहि पितामह