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तीनों लोकों में राधा की स्तुति से देवर्षि नारद खीझ गए थे। उनकी शिकायत थी कि वह तो कृष्ण से अथाह प्रेम करते हैं फिर उनका नाम कोई क्यों नहीं लेता, हर भक्त ‘राधे-राधे’ क्यों करता रहता है। वह अपनी यह व्यथा लेकर श्रीकृष्ण के पास पहुंचे।

यह उन दिनों की बात है, जब चंपारन में किसानों का सत्याग्रह चल रहा था| गांधीजी की उस सेना में सभी प्रकार के सैनिक थे| जिसमें आत्मिक बल था, वे उस लड़ाई में शामिल हो सकते थे| सत्याग्रहियों में कुष्ठ रोग से पीड़ित एक खेतिहर मजदूर भी था उसके शरीर में घाव थे| वह उन पर कपड़ा लपेटकर चलता था| एक दिन शाम को सत्याग्रही अपनी छावनी को लौट रहे थे, पर उस बेचारे कुष्ठी से चला नहीं जा रहा था| उसके पैरों पर बंधे कपड़े कहीं गिर गए थे | घावों से खून बह रहा था| सब लोग आश्रम में पहुंच गए| बस एक वही व्यक्ति रह गया|