अध्याय 117
1 [स]
तम आपतन्तं संप्रेक्ष्य सात्वतं युद्धदुर्मदम
करॊधाद भूरिश्रवा राजन सहसा समुपाद्रवत
“Dhritarashtra said, ‘Filled with rage, what did Partha, the son ofPandu, do to Bhagadatta? What also did the king of the Pragjyotishas doto Partha? Tell me all this, O Sanjaya!’
बात उस समय की है, जब भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था| एक बालक था| उसके अंदर देश-भक्ति कूट-कूटकर भरी थी| वह उन लोगों की बराबर मदद करता था, जो आजादी के दीवाने थे और गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए जी-जान से जुटे थे|
पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना।।
“Vyasa said, ‘O excellent son, asked by thee, I have told thee truly whatthe answer to thy question should be according to the doctrine ofknowledge as expounded in the Sankhya system.
1 [व]
एवं स नाहुषॊ राजा ययातिः पुत्रम ईप्सितम
राज्ये ऽभिषिच्य मुदितॊ वानप्रस्थॊ ऽभवन मुनिः