अध्याय 65
1 [व]
दुर्यॊधने धार्तराष्ट्रे तद वचॊ ऽपरतिनन्दति
तूष्णींभूतेषु सर्वेषु समुत्तस्थुर नरेश्वराः
1 [व]
दुर्यॊधने धार्तराष्ट्रे तद वचॊ ऽपरतिनन्दति
तूष्णींभूतेषु सर्वेषु समुत्तस्थुर नरेश्वराः
Sanjaya said, “Then when the sun attained the meridian, kingYudhishthira, beholding Srutayush, urged on his steeds. And the kingrushed at Srutayush, that chastiser of foes, striking him with ninestraight shafts of keen points.
श्यामदस बहुत ही निर्धन व्यक्ति था| एक बार उसे स्वप्न आया की उसने अपने मित्र रामदास से सौ रुपये उधार लिए हैं| प्रात: जब वह उठा तो उसे इस स्वप्न का फल जानने की इच्छा हुई, उसने कई लोगों से स्वप्न की चर्चा कि|
“Kunti said, ‘O holy one, thou art my father-in-law and therefore, mydeity of deities. Verily, thou art my god of gods. Hear my words oftruth.
“Sauti said. ‘Jaratkaru, hearing all this, became excessively dejected.And from sorrow he spoke unto those Pitris in words obstructed by tears.’And Jaratkaru said, ‘Ye are even my fathers and grand-fathers gonebefore. Therefore, tell me what I must do for your welfare. I am thatsinful son of yours, Jaratkaru! Punish me for my sinful deeds, a wretchthat I am.’
गुरू धौम्य का बहुत बडा आश्रम था। आश्रम में कई शिष्य थे। उनमें अरूणि गुरू का सबसे प्रिय शिष्य था। आश्रम के पास खेती की बहुत ज़मीन थी। खेतों में फसल लहलहा रही थी। एक दिन शाम को एकाएक घनघोर घटा घिर आई और थोडी देर में तेज वर्षा होने लगी। उस समय ज्यादातर शिष्य उठ कर चले गए थे। अरूणि गुरूदेव के पास बैठा था।
Janamejaya said, “While the high-souled Pandavas were living in thosewoods, delighted with the pleasant conversation they held with the Munis,and engaged in distributing the food they obtained from the sun, withvarious kinds of venison to
तपेदिक को राजयक्ष्मा या टी.बी. भी कहा जाता है| यह एक बड़ी भयानक बीमारी है| आम जनता इसका नाम लेने से भी डरती है| जिस परिवार में यह रोग हो जाता है, उसकी हालत बड़ी दयनीय हो जाती है|
“Dhritarashtra said, ‘When the troops were thus engaged and thusproceeded against one another in separate divisions, how did Partha andthe warriors of my army endued with great activity fight?