अध्याय 165
1 [अर्ज]
कृतास्त्रम अभिविश्वस्तम अथ मां हरिवाहनः
संस्पृश्य मूर्ध्नि पाणिभ्याम इदं वचनम अब्रवीत
1 [अर्ज]
कृतास्त्रम अभिविश्वस्तम अथ मां हरिवाहनः
संस्पृश्य मूर्ध्नि पाणिभ्याम इदं वचनम अब्रवीत
किसी बस्ती में एक बालक रहता था| वह बड़ा निडर था| घूमते-घूमते वह अक्सर बस्ती के बाहर नदी के किनारे चला जाता था और थोड़ी देर वहां रुककर लौट आता था| उसके बाबा उसे बहुत प्यार करते थे| उन्हें लगा कि किसी दिन वह नदी में गिर न जाए! इसलिए एक दिन उन्होंने अपने बेटे से कहा – “बेटे, तुम अकेले नदी के किनारे मत जाया करो|”
Vaisampayana said, ‘Having bowed unto Hrishikesa, and saluted Bhishma,and taken the permission of all the seniors assembled there, Yudhishthirabegan to put questions unto Bhishma.’
जय राम रमारमनं शमनं . भव ताप भयाकुल पाहि जनं ..
अवधेस सुरेस रमेस विभो . शरनागत मांगत पाहि प्रभो ..
एक सुनार के मकान में आग लग गई| अब बहुत भयंकर थी, सबकुछ धू-धू कर जल रहा था| सुनार असहाय खड़ा देख रहा था| तभी उसने जोर से कहा – “भाईयों, इस मकान के अन्दर मेरी जिंदगीभर की कमाई के लाखों के जेवर एक बक्से में पड़े हैं, कोई तो उसे निकाल लाओ|”
“Vyasa said, ‘If Emancipation be desirable, then knowledge should beacquired. For a person who is borne now up and now down along the streamof Time or life, knowledge is the raft by which he can reach the shore.
1 [व]
शरुत्वा कुमारं जातं तु देव यानी शुचिस्मिता
चिन्तयाम आस दुःखार्ता शर्मिष्ठां परति भारत